Friday, 2 September 2016

"एक घटना और आत्मविश्वाश"

                                         एक व्यक्ति जिसने तोडा पहाड़ का गुरूर    




एक ऐसा व्यक्ति जिसने पूरी दुनिया को लोहे के चने चबाने पर मजबूर क्र दिया, जिसने असम्भव कार्य को भी सम्भव कर दिया, जिसने पूरी दुनियां को एक नया सन्देश दिया की जीवन में कोई भी कार्य असम्भव नहीं है यदि उसकी द्रढ़इच्छा मजबूत हो  तो.........!
मित्रों आज मैं एक ऐसे व्यक्ति के जीवन की सच्ची घटना सुनाने जा रहा हूं जिससे मुझे एक प्रेरड़ा प्राप्त हुई है। जी हाँ मित्रों आज मै "अंकित त्रिपाठी" आप सब के समक्ष ऐसी ही कहानी प्रस्तुत करने जा रहा हूं।
मित्रों घटना बिहार राज्य के छोटे से गाँव गहलौर में रहने वाले "दशरथ माँझी" की है।
दशरथ माँझी का जन्म 1934 में बिहार के गया में गहलौर नाम के गाँव में एक दलित परिवार में हुआ था। शुरुआती जीवन में उन्हें अपना छोटे से छोटा हक़ मांगने के लिए संघर्ष करना पडा।
वे जिस गाँव में रहते थे वहां से पास के कस्बे में जाने के लिए एक पूरा पहाड़ जिसका नाम "गहलौर पर्वत" था, पार करना पड़ता था। मित्रों दशरथ माँझी ने केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर अकेले ही 360 फुट लंबी, 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को बीच से चीर
कर एक सड़क बना डाली और इस काम में उन्हें करीब 22 साल लग गए थे और इतने वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद अन्ततः दशरथ जी के द्वारा बनाई सड़क ने अत्रि और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 कि. मी. से 15 कि. मी. कर दिया।
दशरथ माँझी का विवाह उन्ही के गाँव की रहने वाली एक लड़की से हुआ जिसका नाम फाल्गुनी देवी था।
मित्रों हर किसी के जीवन में कभी - कभी ऐसी घटनाएं होती हैं जिससे व्यक्ति को उसके जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान करती है और जिसके कारण व्यक्ति असम्भव कार्य को भी सम्भव कर देता है।
मित्रों दशरथ माँझी जी के जीवन में भी कुछ ऐसी ही घटना घटी थी जिससे प्रेरित होकर उन्होंने यह संकल्प लिया और उन्होंने असम्भव कार्य को संभव कर अपना संकल्प पूरा किया। दशरथ माँझी को गहलौर पहाड़ तोड़ कर रास्ता बनाने का जूनून तब सवार हुआ जब पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे अपने पति के लिए     खाना ले जाने के क्रम में उनकी पत्नी फगुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गई और उनका निधन हो गया उनकी पत्नी की मृत्यु दवाइयों और समय पर चिकित्सा केंद्र ना पहुँच पाने के अभाव में हुई क्योंकि चिकित्सा केंद्र दूर था और दवाइयां लेने भी बाजार जाना था जो कि नजदीक नहीं था। समय पर दवा नहीं मिल सकी यह बात उनके मन में घर कर गई, और इसके बाद दशरथ माँझी जी ने संकल्प लिया की वे अकेले दम पर पहाड़ के बीचो बीच से रास्ता निकालेगा और अत्रि वजीरगंज की दूरी को कम करेगा। अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात उन्होंने 360 फुट लम्बा, 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा गहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाने का फैसला किया।
मित्रों दशरथ माँझी जी का मज़ाक भी उड़ाया गया यहाँ तक लोग इनको पागल भी बोलने लगे थे किन्तु माँझी जी का कहना था कि  "लोग मुझे जितना पागल और मेरे कार्य का मजाक उड़ाते थे उतना मेरा निश्चय और भी ज्यादा मजबूत होता गया।" और उन्होंने अपने जीवन के 22 वर्ष (1960 से 1982) सिर्फ पहाड़ को तोड़ कर सड़क बनाने में बिता दिए और अंततः उन्हें विजय प्राप्त हुई।
मित्रों दशरथ माँझी की तरह ना जाने कितने ही ऐसे महान व्यक्ति हमारे देश में है जिन्होंने अपने कार्य से ना सिर्फ लोगों के दिलों को जीता अपितु समस्त नागरिकों को एक सन्देश भी दिया की यदि व्यक्ति चाहे तो वह हर कार्य क्र सकता है यदि कार्य द्रढसंकल्प से किया जाए।
मित्रों यह थी मेरी आज की कहानी आशा करता हूँ कि आप सब को पसंद आई होगी। 
                                                                                                                           
                                                                    धन्यवाद........!                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     आपका मित्र                                                                                                                          अंकित त्रिपाठी 

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