"दि हिरोइन ऑफ दि हाईजैक"
मित्रों नमस्कार आज मैं "अंकित त्रिपाठी" आप सब के समक्ष एक ऐसी साहसी और बहादुर लड़की की सच्ची घटना बताने जा रहा हूँ जिसने अपने अदम्य साहस और बहादुरी से न केवल कई यात्रियों की जान बचाई अपितु समस्त देशवासियों को एक सीख प्रदान की और जिसने समस्त विश्व में भारत का नाम रोशन किया जिसने अपनी जान की परवाह ना करते हुए 376 यात्रियों की जान बचाई।
मित्रों नीरजा भनोट को भारत सरकार ने इस अदभुद वीरता और अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत "अशोक चक्र" से सम्मानित किया गया जो कि भारत का सर्वोच्च शान्तिकालीन वीरता पुरस्कार है। अपनी वीरगति के समय नीरजा की उम्र महज 23 साल की ही थी। इस प्रकार वह यह पदक प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला और सबसे काम आयु की महिला नागरिक बनीं। मित्रों पाकिस्तान की ओर से उन्हें "तमगा - ए - इन्सानियत" से नवाजा गया। वर्ष 2004 में उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकेट भी जारी किया और अमेरिका ने वर्ष 2005 में उन्हें "जस्टिस फॉर क्राइम" पुरस्कार से सम्मानित किया।
नीरजा भनोट |
जी हां मित्रों आज मैं अंकित त्रिपाठी आप सब के समक्ष एक ऐसी सच्ची घटना प्रस्तुत करने जा रहा हूँ जिसे पढ़ कर आप सब की आँखे नम हो जाएंगी। मित्रों यह घटना 5 सितम्बर 1986 की है जब मुम्बई से अमेरिका जाने वाली "पैन एम 73 फ्लाइट" जिसे पाकिस्तान के करांची एअरपोर्ट पर अपहरण कर लिया गया था। उस समय विमान में 376 यात्री और 19 क्रू सदस्य थे। मित्रों यह घटना उस लड़की की है जो उसी विमान की सीनियर परिचालिका थीं जिसका नाम आज पूरा विश्व गर्व से लेता है और वह लड़की कोई और नहीं अपितु "नीरजा भनोट " थीं।
उनका जन्म चण्डीगढ़ में हुआ था। वह रमा भनोट और हरीश भनोट की बेटी थी। नीरजा का विवाह वर्ष 1985 में संम्पन्न हुआ और अपने पति के साथ खाड़ी देश को चली गई लेकिन कुछ दिनों बाद दहेज़ के दबाव को ले कर इस रिश्ते में खटास आ गई और विवाह के दो महीने बाद नीरजा वापस मुम्बई आ गई। मुम्बई आने के बाद उन्होंने पैन एम 73 में विमान परिचालिका की नौकरी के लिए आवेदन किया और चुने जाने के बाद मियामी में ट्रेनिंग के बाद वापस लौटीं, और अपनी नौकरी पूरी ईमानदारी से करने लगीं।
मित्रों आतंकवादी जिन्होंने विमान का अपहरण किया था वो जेल में कैद उनके सदस्यों को रिहा कराना चाहते थे। जैसे ही आतंकवादियों ने विमान का अपहरण किया वैसे ही नीरजा ने इसकी सूचना चालक स्थान पर बैठे कर्मचारी को दे दी एअरक्राफ्ट के बाकी सभी सदस्य चाहते थे की अब विमान अपनी जगह से किसी भी हालत में ना उड़े। उन सब में नीरजा ही सबसे सीनियर परिचालिका थीं इसलिए नीरजा ने ही उसे अपने हाथों में लिया। जब विमान का अपहरण हुआ तब वह विमान के अपहरण होने की जानकारी चालक स्थान पर बैठे कर्मचारी तक पहुँचाना चाहती थीं किन्तु उन्हें रोक दिया गया लेकिन फिर भी उन्होंने कोड की भाषा में अपनी बातों को कर्मचारियों तक पहुंचाया, जैसे ही विमान चालक तक नीरजा की बात पहुंची तो उस विमान के पायलेट, सह-पायलेट और फ्लाइट इंजीनियर विमान को वही छोड़ कर भाग गए। फिर उन आतंकवादियों ने नीरजा से सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्ठे करने को कहा ताकि उनमे से वो अमेरिकन्स को पहचान सकें। उन आतंकवादियों का मुख्य लक्ष्य अमेरिकी यात्रियों को मारना था, इसलिए नीरजा ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ 41 अमेरिकन्स के पासपोर्ट छिपा दिए जिनमे से कुछ उन्होंने सीट के नीचे और कुछ ढलान वाली जगह पर छुपा दिए।
मित्रों उस विमान में बैठे 41 अमेरिकियों में से सिर्फ दो को ही आतंकवादी मारने में सफल हुए। फिर आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सरकार से विमान में पायलेट भेजने को कहा, परन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। फिर आतंकवादियों ने एक ब्रिटिश नागरिक को विमान के द्वार पर ला कर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि वो पायलेट नहीं भेजेंगे तो वो उसे मार देंगे तभी नीरजा ने आतंकवादियों से से बात कर उस ब्रिटिश नागरिक को बचा लिया।
मित्रों यहीं से पता चलता है कि नीरजा कितनी साहसी, बहादुर और सूझ-बूझ वाली महिला थीं। इसके पश्चात कुछ घण्टों बाद उस विमान फ्यूल समाप्त हो गया और विमान में अंधेरा हो गया जिसके कारण अपहरणकर्ताओं ने अँधेरे में ही गोलीबारी शुरू कर दी। तभी अँधेरे का फायदा उठाते हुए नीरजा ने अपातकालीन द्वार खोलकर यात्रियों को बाहर निकालने की कोशिश की। नीरजा ने जब द्वार खोला तब वो चाहती तो पहले स्वयं को बचा सकती थी, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और सभी यात्रियों को बाहर निकालने के बाद बचे हुए तीन बच्चों को बचाते हुए नीरजा उन आतंकवादियों की गोली शिकार हो गई जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई।
मित्रों उनमे से एक बच्चा जो उस समय महज 7 साल का था वह नीरजा भनोट की बहादुरी से प्रभावित होकर एयरलाइन्स में कैप्टन बना। मित्रों महज 23 साल की उम्र में इतनी बहादुरी और साहस से नीरजा ने सभी यात्रियों की जान बचाई थी।
मित्रों "अपने जन्मदिन के दो दिन पहले शहीद होने वाली भारत के की इस बहादुर बेटी पर ना सिर्फ भारत अपितु पाकिस्तान और अमेरिका भी रोया था" क्योंकि उन्होंने कई अमेरिकी और पाकिस्तानी लोगों की जान बचाई थी। नीरजा भनोट को "दि हिरोइन ऑफ दि हाईजैक" के नाम से पुकारा जाता है। नीरजा भनोट मरणोपरांत अशोक चक्र पाने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय महिला थी। उनकी इस बहादुरी के लिए उन्हें विश्व में कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
डाक टिकट |
मित्रों इतना ही नहीं अपितु उनकी याद में एक संस्था "नीरजा भनोट पैन एम न्यास" की स्थापना भी हुई जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए महिलाओं को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है। उनके परिजनों द्वारा स्थापित यह संस्था प्रतिवर्ष दो पुरस्कार प्रदान करती है जिसमे से एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है, और दूसरा भारत में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने और संघर्ष के लिए प्रदान किया जाता है। प्रत्येक पुरस्कार की 1,50,000 धनराशि है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्रॉफी और स्मृतिपत्र भी प्रदान किया जाता है।
1- अशोक चक्र - भारत
2- फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हेरोइज़्म अवार्ड - यू एस ए (U S A )
3- जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड - यूनाइटेड स्टेट (कोलम्बिया)
4- विशेष बहादुरी पुरस्कार - यूनाइटेड स्टेट ( जस्टिस विभाग)
5- तमगा - ए - इन्सानियत - पाकिस्तान
"मित्रों त्याग और अदम्य साहस की इस महान प्रतिमूर्ति और भारत की इस वीर बेटी को अंकित त्रिपाठी की ओर से शत-शत नमन एवं भावपूर्ण श्रद्धांजलि.........!"
धन्यवाद
अंकित त्रिपाठी
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