Tuesday, 27 September 2016

'अनसुनी' लवस्टोरी

       पढ़िए पूर्व PM मनमोहन सिंह की 'अनसुनी' लवस्टोरी


stories from manmohan singhs autobiography strictly personal by daman singh

पढ़िए, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जन्मदिन पर उनकी पर्सनल लाइफ के 11 किस्से। 

strictly personal


1. कांटो का खिलाड़ी ‘मोहन’

मोहन अपने दादा संत सिंह और दादी जमना देवी के साथ रहता था. मां अमृत की मौत टाइफॉइड से हुई थी. पापा के पास कोई ऐसी नौकरी नहीं थी, जो उन्हें स्थिर रखे. पिता घूमते रहते, फिर पेशावर में सेटल हो गए. लेकिन मोहन उनसे दूर ही रहा. जमना देवी को घूमने का बहुत शौक था. कभी पैदल, तो कभी खच्चर पर. और घुमक्कड़ बच्चे मोहन को इसमें खूब मजा आता. दोनों निकल पड़ते. एक दिन ऐसा हुआ, कि जमना देवी के पांव में ये बड़ा वाला कांटा चुभ गया. और मोहन ने बड़ी चालाकी से दूसरे कांटे को सुई की तरह इस्तेमाल करते हुए कांटा निकाल दिया. बात इतनी बड़ी नहीं थी. पर दादी तो दादी. सालों तक मोहन की बहादुरी के किस्से घरवालों को सुनाती रहीं.

2. बचपन में मलाई चुराते थे

गांव का स्कूल बस चौथी क्लास तक था. इसलिए मोहन को उनके चाचा-चाची के साथ चकवाल भेज दिया गया. यहां मोहन का मन नहीं लगता. चाचा थोड़े चुप-चुप रहते थे. मोहन को उनसे डर लगता. फिर यूं हुआ कि धीरे-धीरे मोहन अपनी चचेरी बहन तरना का दोस्त बन गया. दोनों दिन भर लड़ते. लेकिन लाड़ भी करते एक-दूसरे को. पांव तो घर पर रुकते नहीं थे मोहन के. पूरा शहर अकेले ही घूम डाला. मजा तो तब आता, जब चाची उसको हलवाई के यहां से दही लाने भेजतीं. मोहन वापसी में सारी मलाई खा जाता. और चाची को पता भी नहीं चलता.

3. बहन के पर्स से करते थे चोरी

रिश्तेदार जब भी आते, तरना को पैसे मिलते. मोहन को पता था वो पैसे कहां रखती. चाबी भी पता थी. मोहन उसमें से जरा-जरा पैसे मारता रहता. उन्हें एक मोज़े में डालकर अपने सूटकेस में छिपा देता. चूंकि किताबों का शौक था, इन बचे हुए पैसों से किताबें ले आता. और शौक भी मामूली नहीं. किताब जरा सी पुरानी हो जाए, फट जाए, या धब्बा लग जाए, तुरंत उसे फेंक नई किताब ले आता. एक दिन चाचा को मोजा मिल गया. मोहन की सांस अटक गई. पर जाने को कौन सा शुभ दिन था, डांट नहीं पड़ी.

4. गांव कभी भूलता नहीं था

मोहन को गांव को खूब याद आती. जाने का मन करता. पर अकेले आने-जाने की सख्त मनाही थी. तो मोहन ने एक दिन झूठ कहा. कि जान-पहचान का कोई आदमी चकवाल से गाह जा रहा है. उसी के साथ जाएगा. और अकेले बस स्टैंड से बस पकड़ गांव पहुंच गया. घर पहुंचा तो धुल और पसीने में सना हुआ. दादा ने झाड़ लगाई. और वापस चाचा के घर रवाना कर दिया. लेकिन एक साल बाद जो हुआ, वो मोहन के कोमल दिमाग के लिए और बुरा था. साल भर बाद पापा आए, और पेशावर ले जाने का ऐलान कर दिया.
पापा ने दूसरी शादी कर ली थी. नई मां से 3 बहनें थीं. मोहन को नहीं पता था आगे क्या होगा. लेकिन नई मां सीतावंती कौर ने मोहन को प्यार-दुलार में कोई कमी नहीं दिखाई. काम करने को कहता भी तो खेलने भेज देतीं. मोहन को ज्यादा समय नहीं लगा उनसे लगाव हो जाने में. और पूरी कोशिश करता की बहनों को खुश रख सके.

5. वो लड़की जो अच्छी लगती थी

ये मोहन के दिमाग की बनावट के दिन थे. सीखने के दिन थे. आठवीं के पेपर में मोहन की जिले में तीसरी रैंक आई. अब दोस्तों में इज्जत बढ़ गई थी. ये वही समय था जब एक लड़की उन्हें खूब पसंद थी. लेडी ग्रिफिथ हाई स्कूल में थी. उसके पापा डॉक्टर थे. मनमोहन सिंह बताते हैं कि टीबी से उसकी मौत हो गई थी. उन्हें उसका नाम नहीं याद आता.

6. मनमोहन की पहली, और महात्मा गांधी की इकलौती फिल्म

तब फिल्मों का चलन इंडिया में नया था. मोहन ने अपनी पहली फिल्म 1943 में देखी थी. नाम था राम-राज्य. ये कहानी थी राम और सीता के अयोध्या वापस आने की. लोग कहते थे ये इकलौती पिक्चर थी जो महात्मा गांधी ने देखी थी.

7. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान

जब दूसरा विश्व युद्ध ख़तम हुआ, जायज़ सी बात है ब्रिटेन खुश था. स्कूलों में मिठाइयां बंटी. लेकिन मोहन को पता था कि ये ब्रिटेन की जीत है, इंडिया की नहीं. खालसा हाई स्कूल में पढ़ने वाले मनमोहन ने दोस्तों को समझाया कि क्यों ये मिठाई नहीं खानी चाहिए. मनमोहन की उम्र उस वक़्त 13 साल थी. लेकिन वो अपनी पॉलिटिक्स समझने लगा था.

8. पार्टीशन और पिता की मौत

समय के साथ मुस्लिम लीग की पाकिस्तान बनाने की मांग आअग पकड़ रही थी. ये बात है 1946 की. जिन्नाह ने जुलाई में डायरेक्ट एक्शन रेजोल्यूशन लोगों के सामने रखा. दंगे भड़क उठे. बंगाल में हिंदू मरे. बिहार में मुसलमान. पार्टीशन के समय मनमोहन सिंह मेट्रिक की परीक्षा दे रहे थे. एग्जाम लाहौर में होना था. उस दिन जब मोहन एग्जाम देने निकले, सड़क पर लाशें बिछी हुई थीं. पूरा शहर पार कर मनमोहन सिंह गए और एग्जाम दिया. ये बात अलग है कि उसका रिजल्ट कभी नहीं आया.
एक दिन मनमोहन के पिता को भाई का टेलीग्राम मिला, ‘मां सुरक्षित हैं, पापा को मार डाला’. मोहन की दादी को एक मुसलमान परिवार ने शरण दी थी. जिससे उनकी जान बच गई थी.

family
 


9. ऊंची हील, सफ़ेद सलवार कमीज़ में मिलीं गुरशरन

जवान मनमोहन लंदन से पढ़कर आया था. जाहिर सी बात है, शादी के मार्केट में खूब डिमांड थी. एक पैसेवाले घर से रिश्ता आया. दहेज़ में फ़िएट कार दे रहे थे. लेकिन लड़की केवल स्कूल भर तक पढ़ी हुई थी. मनमोहन ने कहा, दहेज़ नहीं चाहिए. पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए. तब उनके के परिवार को जानने वाली बसंत कौर मनमोहन के लिए गुरशरन का रिश्ता लेकर आईं. बसंत गुरशरन की बड़ी बहन के पति को जानती थीं. गुरशरन की मां मनमोहन से बसंत के घर पर मिलीं. और लड़का इतना पसंद आया, कि तुरंत अपनी बेटी को बुलवा लिया. और दोनों को अकेले बात करने भेज दिया. ये वो दिन था जब मनमोहन ने गुरशरन को पहली बार देखा था. सफ़ेद सलवार कमीज़, सफ़ेद दुपट्टे, और हील वाली सैंडल में.

10. लेकिन इश्क की हद देखिए

गुरशरन को गाने का खूब शौक था. लेकिन रियाज छूट गया था. एक म्यूजिक कम्पटीशन में हिस्सा लिया. उनके होने वाले पति मनमोहन भी आए थे वहां. प्रोग्राम के बाद गुरशरन के गुरु ने उनकी खूब बुराई की. कहा बेहद बेसुरा गाया. लेकिन मनमोहन का इश्क देखिए. बोले गुरूजी गलत कह रहे हैं. तुमने खूब अच्छा गया. और घर छोड़ने के पहले अगले दिन सुबह के नाश्ते का न्योता दिया. होने वाली बीवी को इम्प्रेस करने के लिए अंग्रेजी ब्रेकफास्ट मंगवाया. कॉर्नफ्लेक्स और अंडे. गुरशरन कहती हैं कि न तो कॉर्नफ्लेक्स में स्वाद था. और अंडे तो वाहियात थे.

11. और नहीं खिंच पाईं शादी की तस्वीरें

गुरशरन और मनमोहन की शादी की तस्वीरें नहीं हैं. क्योंकि मनमोहन के घर वाले फोटोग्राफर अरेंज करना भूल गए थे. दुल्हन की विदाई के कपड़े तक लाना भूल गए थे. गुरशरन अपनी शादी वाले सलवार कमीज़ में ही विदा हुई. गुरशरन कहती हैं कि ये घर तबेले जैसा था. पूरा घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था. उन्हें छत पर एक कमरा मिला था. अगले दिन गुरशरन ससुर के सामने अपना सर ढंकने की कोशिश कर रही थीं. ससुर ने कहा, इसकी कोई जरूरत नहीं. चार दिन बाद मनमोहन और गुरशरन चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए.

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