कहानी शहाबुद्दीन की जिसने दो भाइयों को तेजाब से नहला दिया था
1300 गाड़ियों का काफिला लेकर जेल से चला शहाबुद्दीन। काफिला गुजर रहा था, टोल टैक्स वाले साइड में खड़े थे। उसी में कई सारे और लोग भी पार हो गए शहाबु के साथ।
एक दुर्दांत अपराधी शहाबुद्दीन जेल से छूटता है और जनता उसके लिए जय-जयकार करती है। अपराधी खुलेआम बोलता है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘परिस्थितियों का नेता’ है, लालू प्रसाद यादव मेरा नेता है।
क्योंकि इसी मुख्यमंत्री ने 11 साल पहले शहाबुद्दीन को जेल भिजवाया था, और अब परिस्थितियां ऐसी हैं कि शहाबुद्दीन के नेता लालू प्रसाद यादव के समर्थन से नीतीश मुख्यमंत्री बने हुए हैं।
शहाबुद्दीन का जेल से छूटना कोई आश्चर्यचकित करने वाली घटना नहीं है। लालू की पार्टी के सत्ता में आते ही ये कयास लगना शुरू हो गया था। लालू के जंगल राज में शहाबुद्दीन जैसा गुंडा ही वोट बटोरता था। जेल से भी जीत जाता था शहाबुद्दीन। सीवान में इसे चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं थी। ‘साहब’ का नाम ही काफी था। वो वक़्त था, जब शहाबुद्दीन की फोटो सीवान जिले की हर दुकान में टंगी होती थी। सम्मान में नहीं, डर के चलते। अभी सीवान से सांसद हैं बीजेपी के ओमप्रकाश यादव। पंद्रह साल पहले शहाबुद्दीन ने ओमप्रकाश को सरेआम दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था सीवान में।
राजेंद्र प्रसाद के जीरादेई से ही ये गुंडा बना था विधायक
अस्सी के दशक में बिहार का सीवान जिला तीन लोगों के लिए जाना जाता था। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, सिविल सर्विसेज़ टॉपर आमिर सुभानी और ठग नटवर लाल, राजेंद्र प्रसाद सबके सिरमौर थे। आमिर उस समय मुसलमान समाज का चेहरा बने हुए थे, और नटवर के किस्से मशहूर थे। उसी वक़्त एक और लड़का अपनी जगह बना रहा था। शहाबुद्दीन जो कम्युनिस्ट और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ खूनी मार-पीट के चलते चर्चित हुआ था। इतना कि "शाबू-AK 47" नाम ही पड़ गया। 1986 में हुसैनगंज थाने में इस पर पहली FIR दर्ज हुई थी। आज उसी थाने में ये "A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर" है। मतलब वैसा अपराधी जिसका सुधार कभी नहीं हो सकता।
अस्सी के दशक में ही लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पक्की कर रहे थे।शहाबुद्दीन लालू के साथ हो लिया, मात्र 23 की उम्र में 1990 में विधायक बन गया। विधायक बनने के लिए 25 मिनिमम उम्र होती है। फिर ये अपराधी दो बार विधायक बना और चार बार सांसद। 1996 में केन्द्रीय राज्य मंत्री बनते-बनते रह गया था। क्योंकि एक केस खुल गया था। वो तो हो गया, पर लालू को जिताने के लिए इसकी जरूरत बहुत पड़ती थी। उनके लिए ये कुछ भी करने को तैयार था। और लालू इसके लिए इसी प्रेम में बिहार में अपहरण एक उद्योग बन गया। सैकड़ों लोगों का अपहरण हुआ, बिजनेसमैन राज्य छोड़-छोड़ के भाग गए, कोई आना नहीं चाहता था। इसी दौरान और भी कई अपराधी आ गए।
"पर शहाबुद्दीन जैसा कोई नहीं था। बोलने में विनम्र, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का जहीन तरीके से प्रयोग। ‘न्यायिक प्रक्रिया’ में पूरा भरोसा। चश्मे, महंगे कपड़े और स्टाइल और लालू का आशीर्वाद।"
इसके अपराधों की लिस्ट वोटर लिस्ट जैसी है
इसके अपराधों की लिस्ट बहुत लम्बी है। बहुत तो ऐसे हैं जिनका कोई हिसाब नहीं है, जैसे सालों तक सीवान में डॉक्टर फीस के नाम पर 50 रुपये लेते थे। क्योंकि साहब का ऑर्डर था रात को 8 बजने से पहले लोग घर में घुस जाते थे। क्योंकि शहाबुद्दीन का डर था। कोई नई कार नहीं खरीदता था। अपनी तनख्वाह किसी को नहीं बताता था, क्योंकि रंगदारी देनी पड़ेगी। शादी-विवाह में कितना खर्च हुआ, कोई कहीं नहीं बताता था। बहुत बार तो लोग ये भी नहीं बताते थे कि बच्चे कहां नौकरी कर रहे हैं। कई घरों में ऐसा हुआ कि कुछ बच्चे नौकरी कर रहे हैं, तो कुछ घर पर ही रह गए, क्योंकि सारे बाहर चले जाते तो मां-बाप को रंगदारी देनी पड़ती। धनी लोग पुरानी मोटरसाइकल से चलते और कम पैसे वाले पैदल। लालू राज में सीवान जिले का विकास यही था।
पर इन्हीं अपराधों ने शहाबुद्दीन को जनाधार बना दिया। वो अपने घर में जनता अदालत लगाने लगा। लोगों की समस्याएं मिनटों में निपटाई जाने लगीं। किसी का घर किसी ने हड़प लिया। साहब का इशारा आता था। अगली सुबह वो आदमी खुद ही खाली कर जाता। साहब डाइवोर्स प्रॉब्लम भी निपटा देते थे। जमीन की लड़ाई में तो ये विशेषज्ञ थे। कई बार तो ऐसा हुआ कि पीड़ित को पुलिस सलाह देती कि साहब के पास चले जाओ। एक दिन एक पुलिस वाला भी साहब के पास पहुंचा था। प्रमोशन के लिए, एक फोन गया, हो गया प्रमोशन।
"जनता इन छोटे-छोटे फायदों में इतना मशगूल हो गई कि इसके अपराधों की तरफ ध्यान देना भूल गई। या यूं कहें कि डर और थोड़े से फायदे ने दिमाग ही कुंद कर दिया था। लोगों ने देखना बंद कर दिया कि इसने कितनी जमीनें हड़पीं, कितने हथियार पाकिस्तान से मंगवाए, नतीजन ये जीतता रहा।"
जेल जाने से पहले इसने पुलिस पर फायरिंग की, सांसद बना.....!
इसकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि पुलिस और सरकारी कर्मचारियों पर इसने हाथ उठाना शुरू कर दिया। मार्च 2001 में इसने एक पुलिस अफसर को थप्पड़ मार दिया। इसके बाद सीवान की पुलिस बौखला गई। एकदम ही अलग अंदाज में पुलिस ने दल बनाकर शहाबुद्दीन पर हमला कर दिया। गोलीबारी हुई, दो पुलिसवालों समेत आठ लोग मारे गए पर शहाबुद्दीन पुलिस की तीन गाड़ियां फूंककर भाग गया नेपाल। उसके भागने के लिए उसके आदमियों ने पुलिस पर हजारों राउंड फायर कर घेराबंदी कर दी थी।
1999 में इसने कम्युनिस्ट पार्टी के एक कार्यकर्ता को किडनैप कर लिया था। उस कार्यकर्ता का फिर कभी कुछ पता ही नहीं चला। इसी मामले में 2003 में शहाबुद्दीन को जेल जाना पड़ा। पर इसने ऐसा जुगाड़ किया कि जेल के नाम पर ये हॉस्पिटल में रहता था। वहीं पंचायत लगाता। इसके आदमी गन लेकर खड़े रहते। पुलिस से लेकर हर व्यवसाय का आदमी इससे मदद मांगने आता। एक आदमी तो इसके लिए गिफ्ट में बन्दूक लेकर आया था, और ये हॉस्पिटल कानूनी तौर पर जेल था। इसके जेल जाने के आठ महीने बाद 2004 में लोकसभा चुनाव था। इस अपराधी को चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं पड़ी,और जीत गया, ओमप्रकाश यादव इसके खिलाफ खड़े हुए थे। वोट भी लाये, पर चुनाव ख़त्म होने के बाद उनके आठ कार्यकर्ताओं का खून हो गया।
2005 में सीवान के डीएम सी के अनिल और एसपी रत्न संजय ने शहाबुद्दीन को सीवान जिले से तड़ीपार किया। एक सांसद अपने जिले से तड़ीपार हुआ, ये बिहार के लिए अनोखा क्षण था। फिर इसके घर पर रेड पड़ी, पाकिस्तान में बने हथियार, बम सब मिले। ये भी सबूत मिले कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से इसके संबंध हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूछा था कि सांसद होने के नाते तुम्हें वैसे हथियारों की जरूरत क्यों है जो सिर्फ आर्मी के पास हैं, सीआरपीएफ और पुलिस के पास भी नहीं हैं।
जेल जाने से कम नहीं हुआ इसका रुतबा
इतना सब होने के बाद भी इसका घमंड कम नहीं हुआ। इसने जेलर को धमकी दी कि तुमको तड़पा-तड़पा के मारेंगे। सुनवाई पर इसका वकील जज को भी धमकी दे आता था। इसके आदमी जेल के लोगों को धमकाते रहते। 2007 में कम्युनिस्ट पार्टी के ऑफिस में तोड़-फोड़ करने के आरोप में इसको दो साल की सजा हुई, फिर कम्युनिस्ट पार्टी के वर्कर की हत्या में इसे आजीवन कारावास की सजा हुई। सिर्फ एक गवाह था इस मामले का, उसने बड़ी हिम्मत दिखाई, किसी तरह बच-बचकर रहा था, और इस अपराधी को जेल भिजवाया।
एक और मुन्ना मर्डर केस में विटनेस राजकुमार नें कुछ यूं बयान दिया था.........!
"मैं अपने दोस्त मुन्ना के साथ मोटरसाइकिल पर जा रहा था। तभी शहाबुद्दीन और उसके आदमी कारों से आये, और हम पर फायरिंग शुरू कर दी। एक गोली टायर में लगी और हम लोग गिर गए, तब शहाबुद्दीन ने मुन्ना के पैर में गोली मार दी, और उसे घसीट के ले जाने लगा। बाद में पता चला कि मुन्ना को एक चिमनी में फेंक दिया गया था।"
तब तक लालू राजनीति से बाहर हो चुके थे, पर इसकी शक्ति कम नहीं हुई थी, कोई इसके खिलाफ खड़ा होने की भी नहीं सोचता था। 1997 में JNU से एक छात्र नेता चंद्रशेखर गए थे नई राजनीति करने, उनको भी मार दिया गया। उसके बाद से सिर्फ एक नेता ओमप्रकाश यादव ही लगे रहे। 2009 में शहाबुद्दीन को इलेक्शन कमीशन ने चुनाव लड़ने से बैन कर दिया, तब इसकी पत्नी हिना को हराकर ओमप्रकाश सांसद बने।
अब बिहार की राजनीति में ये बहुत पीछे चला गया, पर सीवान में नहीं, वहां पर जेल से ही इसके फैसले सुनाये जाते। कहते हैं कि जेल इसके लिए बस नाम भर की थी। सारे इंतजाम रहते। जब कोई हत्या हो जाती तो जेल में रेड पड़ती। एक अफसर के मुताबिक शहाबुद्दीन मुस्कुराता रहता, चुपचाप जेब से निकालकर मोबाइल फोन पुलिस के हाथ में दे देता, ये कई बार हुआ।
2014 लोकसभा चुनाव से इसके बाहर आने की संभावना बढ़ने लगी
2014 में शहाबुद्दीन फिर लोगों की जबान पर आया। राजीव रंजन हत्याकांड में अपने दो भाइयों की हत्या के वो एकमात्र गवाह थे। उनके दो भाइयों को 2004 में तेजाब से नहलाकर मार दिया गया था, क्योंकि रंगदारी को लेकर इसके आदमियों और राजीव के भाइयों में बहस हो गई थी। इन लोगों ने बन्दूक दिखाई और राजीव के भाई ने तेजाब, दोनों भाई मारे गए। परिवार को पुलिस ने कह दिया कि सीवान छोड़कर चले जाइये, और अब कोर्ट में पेशी से पहले राजीव को मार दिया गया। 2016 में एक पत्रकार ज्ञानदेव रंजन की हत्या कर दी गई। उसमें भी इसी का नाम आया। इन दो भाइयों की हत्या वाले मामले में ही इसको बेल मिली है, क्योंकि कोई गवाह नहीं था।
ये जेल से बाहर आ गया है। बिहार में बहार आ गई है। भारत में राजनीति और अपराध के रिश्ते का सबसे बड़ा पैमाना है शहाबुद्दीन। इसका छूटना वो सारे टूटे कांटे दिखाता है, जो हमारे देश की डेमोक्रेसी में धंसे हैं। इसके बाहर आने के खिलाफ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है, देखते हैं क्या होता है।
धन्यवाद..............!
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