Sunday, 16 October 2016

एक कहानी दिल को छू लेने वाली


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 " एक सच्ची कहानी उसी की जुबानी "

मित्रों आप सभी को अंकित त्रिपाठी का नमस्कार.......!

मित्रों आज मैं आप सब को एक ऐसे लड़के के जीवन की एक सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ जिसने बचपन से ही अपने  जीवन में प्यार की कमी बहुत महसूस की जिसको हमेशा सब लोगों से नफरत और लोगों की घृणा ही नसीब हुई।
और हाँ मित्रों इस कहानी को झूठ मत समझना क्योंकि मित्रों उसने स्वयं अपनी जुबां अपना दर्द बयां किया है। मित्रों सिर्फ 27 वर्ष की आयु में इस लड़के ने बहुत  दुःख उठाए।
इतना सब होने पर भी वह हमेशा खुश रहने की कोशिश करता रहता खुद हँसता और दूसरों को भी हँसाता रहता था, हमेशा सबसे मज़ाक किया करता और सबको खुश रखने की कोशिश करता रहता और इसीलिए सब उसे पागल  और बेवकूफ समझते थे पर वो किसी की बात का कभी भी बुरा नहीं मानता वो सब के साथ हमेशा खड़ा रहता चाहे वो किसी के सुख में हो या दुःख में। सब लोग उसे मना करते की क्यों तुम सबके साथ लगे रहते हो क्या जरूरत है किसी के साथ इतना करने की और ये बात कोई और नहीं उसके घर में ही सब लोग कहते थे।

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मित्रों आप सब सोंचते होंगे की यदि वो सबकी मदद करता, सबके साथ खड़ा रहता तो इसमें बुराई क्या है बल्कि यह तो बहुत ही अच्छी बात है फिर क्यों उसके घर वाले उसे ये सब करने से मना करते हैं।
मित्रों कुछ लोगों की एक बुरी आदत होती है की जब कोई जरूरत हो तो जरूरतमन्द को पकड़ कर रखो और जब काम हो जाए तो उसे सम्मानित करने के बजाय अपमानित करते है और यही कारण था की  उसके घर में सब लोग उसे मना करते थे लेकिन उसे लोगों की मदद करना अच्छा लगता है और अभी भी वो यही के,रत है और ऐसा नहीं की उसे कुछ पता नहीं कि जिनकी वो मदद करता है वही लोग उसकी पीठ पीछे उसकी बुराई करते है पर सब लोग ऐसा नहीं करते थे पर कुछ लोग है जो उसकी बुराई करते पर इसके बावजूद भी वो उन्ही की जो उसकी सबसे ज्यादा बुराई करते थे उनकी मदद करता रहता और जब उसको मदद की आवश्यकता पड़ती तो कोई भी उसका साथ नहीं देता। वो अपने काम छोड़ उनकी मदद करता था। मित्रों उसका मनना है की लोग तुम्हारी कितनी भी बुराई करे पर हमें  कभी भी जरूरत पड़ने पर उनकी मदद करने से पीछे नहीं हटना चाहिये क्योंकि नफरत को प्यार से ही मारा जा सकता है।

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फिर एक दिन उसकी एक लड़की से मुलाकात हुई और दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई।  वो लड़की उसको इतनी अच्छी लगी की वो उससे प्यार कर बैठा पर उसने उस लड़की से कुछ भी नहीं बोला उसे इस बात का डर था की कहीं वो उसे छोड़ ना दे  पर  उसे शायद ये नहीं पता था की वो भी उससे उतना ही प्यार करती थी जितना वो उससे। 

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मित्रों उनकी दोस्ती यूं ही चलती रही और दोनों में प्यार भी बढ़ता गया पर किसी ने भी एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार नहीं किया। उन दोनों के बीच इतना प्यार बढ़ गया की दोनों के लिए एक दूसरे के बिना रह पाना असंम्भव हो गया। एक दिन उसी लड़के की बुआ जी के घर पर उनके सबसे छोटे बेटे के मुण्डन पर उसकी बुआ ने घर पर छोटा सा समारोह किया। 
जिसमे घर पर ही रात में भोजन और फिर माँ भगवती का जागरण का कार्यक्रम था उन दोनों के बीच इतना प्यार था की लड़की को भूख बहुत ही जोर से लगी थी और वो बार-बार उस लड़के से बोलती की चल कर के खाना खा लो

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पर उसको भूख नहीं लगी थी और वो बार-बार उसको ये बोलता कि जा कर के तुम खा लो मुझे अभी भूख नहीं लगी है और जब लगेगी तो खा लूँगा। बहुत समय बाद उस लड़के ने लड़की से पूछा की तुमने कुछ खाया की नहीं, तब उस लड़की ने उससे कहा की तुम्हारे बिना मैं कैसे खा सकती हूँ। उसकी ये बात सुन कर उस लड़के को बहुत गुस्सा आया की इतनी भूख लगने के बावजूद उसने कुछ खाया क्यों नहीं। 
तब उसने कहा की चलो अच्छा खा लेते है, तभी लड़की ने बोला की पहले तुम खा लो फिर मैं खाऊँगी इस पर लड़के ने बोला नहीं साथ में खाते है पर लड़की ने उसकी एक नहीं सुनी और पहले उसको खिलाया और जब लड़के ने खाना खा लिया और अपनी जूठी प्लेट और ग्लास को उठा के ले जाने लगा तभी लड़की ने उसके हाथ से उसकी जूठी प्लेट और ग्लास ले कर उसी में अपना खाना खाया और ये सब देख लड़का अचम्भित रह गया। यह देख लड़के ने उससे पूछा की तुमने मेरे जूठे बर्तन में खाना क्यों खाया................?
इस पर लड़की ने कहा की मेरा मन किया...................!

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उन दोनों को नहीं पता था की उनके जीवन में बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है। अच्छा मित्रों ये उस समय की बात है जब दोनों में से किसी के पास भी मोबाइल फ़ोन नहीं था इसलिए मिलना जुलना भी बहुत कम हो पाता था। इसलिए उन दोनों के बारे में किसी को भी कुछ पता नहीं चल पाया। 
फिर एक दिन अचानक लड़की के घर पे उसके रिश्ते वाले आ गए क्योंकि लड़की के माता पिता ने उसकी शादी की बात कर रखी थी पर उस लड़की ने उस रिश्ते से मना कर दिया क्योंकि वो उससे शादी करना चाहती थी जिससे वह प्यार करती थी। पर उसने ये बात किसी से नहीं बताई की वो किसी और से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है। 
कुछ दिन बाद फिर उसके घर पर रिश्ते के लिए आ गए और फिर उस लड़की ने उस रिश्ते के लिए मना कर दिया। ऐसे करते उस लड़की ने अपने 3 रिश्ते ठुकरा दिए। इससे उसके माता पिता सोंच में पड़ गए की आखिर किसलिए वो रिश्ते ठुकरा रही है पर एक दिन उस लड़की के घर वालों ने पूछा की वो ऐसा क्यों कर रही है उस समय किसी काम से उस लड़के की बुआ जी भी उस लड़की के घर पे थीं क्योंकि वो लड़की की माँ की पहचान की थीं और तब उस लड़की ने सबके सामने सारी सच्चाई बता दी। 
फिर उसकी माँ ने पूछा की वो लड़का कौन है और क्या करता है तब लड़की ने लड़के की बुआ जी ओर इशारा करते हुए बताया की वो इनका भतीजा है। 
फिर लड़की की माँ ने लड़के की बुआ से उसके बारे में पूछा की वो क्या करता है तो लड़के की बुआ जी ने सब बता दिया तो लड़की की माँ ने उसकी बुआ जी से कहा की आप उससे पूछ कर बताइये कि वो क्या चाहता है। 
फिर उसके अगले ही दिन लड़के की बुआ उसके घर पर जा कर उससे पूछा की "B" (लड़के के नाम का पहला लेटर) "R" (लड़की के नाम का पहला लेटर) तुमसे शादी करना चाहती है तुम क्या चाहते हो तो उसने भी हाँ कर दी। 

पर कहते हैं ना कि..........!

"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता" 

उसे नहीं पता था की उसकी बुआ ही उसकी ज़िन्दगी बर्बाद करेंगी। उसकी बुआ ने वहाँ जा कर लड़की की माँ से कहा कि वो "R" से शादी नहीं करना चाहता। 
यह सुन लड़की को उनकी बात पे विश्वास नहीं हुआ और उसने कहा की वो ऐसा नहीं कर सकता। इस पर लड़के की बुआ ने उन्हें विश्वास दिलाया की उसने ऐसा ही कहा है। यह सुन उसका बुरा हाल हो गया। वह दिन भर रोती रहती और यही सोचती की उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया.......................?
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जिसके चलते लड़की के माता पिता ने उसकी शादी कहीं और कर दी। और जब लड़के ने उससे मिलने की कोशिश की तो पता चला की उसकी शादी हो गई है। पहले तो उसे यह बात मज़ाक लगी पर जब उसने उस लड़की की कुछ दोस्तों से पूछा तो उसे सच्चाई पता चली, और सच्चाई पता चलते ही जैसे मनो की वो पागल सा हो गया हो। वो बार-बार यही सोचता की सब कुछ सही था फिर उसने शादी क्यों की मैने तो बोला भी था कि मैं उससे शादी करूँगा ये हुए भी उसने किसी और से शादी कर ली।
बस यही बात उसके दिल में घर कर गई और उसके बाद उसका वो हाल हुआ जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते वो पागलों की तरह दिन रात रोता रहता कभी इधर भागता कभी उधर भागता और बस यही सोचता की किसी तरह वह लड़की वापस आ जाए लेकिन अफ़सोस ऐसा हुआ नहीं।
दिन पर दिन उसकी हालत बिगड़ती गई यहाँ तक की उसने खाना पीना भी छोड़ दिया अकेले इधर उधर पागलों की तरह भटकता रहता यहाँ तक वो उसके प्यार में इतना पागल हो गया की उसने अपने हाथ की कलाई पर गर्म सुई से उसका नाम लिख डाला और आज तक वो नाम मिट नहीं पाया। भगवान के मंदिरों में जा कर सर पटक-पटक कर रोता और कहता की मैने ऐसी कौन सी भूल कर दी की मुझे इतनी बड़ी सजा दी। पर भगवान् कहाँ बोलने वाले।
मित्रों ये सच्ची कहानी करीब 11 साल पुरानी है जो कि पूरी तरह सच्ची है।
मित्रों अब वह लड़की उस लड़के के जीवन से हमेशा हमेशा के लिए बहुत दूर जा चुकी है।
पर इसके बाद लड़के का क्या हुआ वो जानने के किये अपने अपने विचार कमेन्ट करें।


















Tuesday, 27 September 2016

'अनसुनी' लवस्टोरी

       पढ़िए पूर्व PM मनमोहन सिंह की 'अनसुनी' लवस्टोरी


stories from manmohan singhs autobiography strictly personal by daman singh

पढ़िए, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जन्मदिन पर उनकी पर्सनल लाइफ के 11 किस्से। 

strictly personal


1. कांटो का खिलाड़ी ‘मोहन’

मोहन अपने दादा संत सिंह और दादी जमना देवी के साथ रहता था. मां अमृत की मौत टाइफॉइड से हुई थी. पापा के पास कोई ऐसी नौकरी नहीं थी, जो उन्हें स्थिर रखे. पिता घूमते रहते, फिर पेशावर में सेटल हो गए. लेकिन मोहन उनसे दूर ही रहा. जमना देवी को घूमने का बहुत शौक था. कभी पैदल, तो कभी खच्चर पर. और घुमक्कड़ बच्चे मोहन को इसमें खूब मजा आता. दोनों निकल पड़ते. एक दिन ऐसा हुआ, कि जमना देवी के पांव में ये बड़ा वाला कांटा चुभ गया. और मोहन ने बड़ी चालाकी से दूसरे कांटे को सुई की तरह इस्तेमाल करते हुए कांटा निकाल दिया. बात इतनी बड़ी नहीं थी. पर दादी तो दादी. सालों तक मोहन की बहादुरी के किस्से घरवालों को सुनाती रहीं.

2. बचपन में मलाई चुराते थे

गांव का स्कूल बस चौथी क्लास तक था. इसलिए मोहन को उनके चाचा-चाची के साथ चकवाल भेज दिया गया. यहां मोहन का मन नहीं लगता. चाचा थोड़े चुप-चुप रहते थे. मोहन को उनसे डर लगता. फिर यूं हुआ कि धीरे-धीरे मोहन अपनी चचेरी बहन तरना का दोस्त बन गया. दोनों दिन भर लड़ते. लेकिन लाड़ भी करते एक-दूसरे को. पांव तो घर पर रुकते नहीं थे मोहन के. पूरा शहर अकेले ही घूम डाला. मजा तो तब आता, जब चाची उसको हलवाई के यहां से दही लाने भेजतीं. मोहन वापसी में सारी मलाई खा जाता. और चाची को पता भी नहीं चलता.

3. बहन के पर्स से करते थे चोरी

रिश्तेदार जब भी आते, तरना को पैसे मिलते. मोहन को पता था वो पैसे कहां रखती. चाबी भी पता थी. मोहन उसमें से जरा-जरा पैसे मारता रहता. उन्हें एक मोज़े में डालकर अपने सूटकेस में छिपा देता. चूंकि किताबों का शौक था, इन बचे हुए पैसों से किताबें ले आता. और शौक भी मामूली नहीं. किताब जरा सी पुरानी हो जाए, फट जाए, या धब्बा लग जाए, तुरंत उसे फेंक नई किताब ले आता. एक दिन चाचा को मोजा मिल गया. मोहन की सांस अटक गई. पर जाने को कौन सा शुभ दिन था, डांट नहीं पड़ी.

4. गांव कभी भूलता नहीं था

मोहन को गांव को खूब याद आती. जाने का मन करता. पर अकेले आने-जाने की सख्त मनाही थी. तो मोहन ने एक दिन झूठ कहा. कि जान-पहचान का कोई आदमी चकवाल से गाह जा रहा है. उसी के साथ जाएगा. और अकेले बस स्टैंड से बस पकड़ गांव पहुंच गया. घर पहुंचा तो धुल और पसीने में सना हुआ. दादा ने झाड़ लगाई. और वापस चाचा के घर रवाना कर दिया. लेकिन एक साल बाद जो हुआ, वो मोहन के कोमल दिमाग के लिए और बुरा था. साल भर बाद पापा आए, और पेशावर ले जाने का ऐलान कर दिया.
पापा ने दूसरी शादी कर ली थी. नई मां से 3 बहनें थीं. मोहन को नहीं पता था आगे क्या होगा. लेकिन नई मां सीतावंती कौर ने मोहन को प्यार-दुलार में कोई कमी नहीं दिखाई. काम करने को कहता भी तो खेलने भेज देतीं. मोहन को ज्यादा समय नहीं लगा उनसे लगाव हो जाने में. और पूरी कोशिश करता की बहनों को खुश रख सके.

5. वो लड़की जो अच्छी लगती थी

ये मोहन के दिमाग की बनावट के दिन थे. सीखने के दिन थे. आठवीं के पेपर में मोहन की जिले में तीसरी रैंक आई. अब दोस्तों में इज्जत बढ़ गई थी. ये वही समय था जब एक लड़की उन्हें खूब पसंद थी. लेडी ग्रिफिथ हाई स्कूल में थी. उसके पापा डॉक्टर थे. मनमोहन सिंह बताते हैं कि टीबी से उसकी मौत हो गई थी. उन्हें उसका नाम नहीं याद आता.

6. मनमोहन की पहली, और महात्मा गांधी की इकलौती फिल्म

तब फिल्मों का चलन इंडिया में नया था. मोहन ने अपनी पहली फिल्म 1943 में देखी थी. नाम था राम-राज्य. ये कहानी थी राम और सीता के अयोध्या वापस आने की. लोग कहते थे ये इकलौती पिक्चर थी जो महात्मा गांधी ने देखी थी.

7. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान

जब दूसरा विश्व युद्ध ख़तम हुआ, जायज़ सी बात है ब्रिटेन खुश था. स्कूलों में मिठाइयां बंटी. लेकिन मोहन को पता था कि ये ब्रिटेन की जीत है, इंडिया की नहीं. खालसा हाई स्कूल में पढ़ने वाले मनमोहन ने दोस्तों को समझाया कि क्यों ये मिठाई नहीं खानी चाहिए. मनमोहन की उम्र उस वक़्त 13 साल थी. लेकिन वो अपनी पॉलिटिक्स समझने लगा था.

8. पार्टीशन और पिता की मौत

समय के साथ मुस्लिम लीग की पाकिस्तान बनाने की मांग आअग पकड़ रही थी. ये बात है 1946 की. जिन्नाह ने जुलाई में डायरेक्ट एक्शन रेजोल्यूशन लोगों के सामने रखा. दंगे भड़क उठे. बंगाल में हिंदू मरे. बिहार में मुसलमान. पार्टीशन के समय मनमोहन सिंह मेट्रिक की परीक्षा दे रहे थे. एग्जाम लाहौर में होना था. उस दिन जब मोहन एग्जाम देने निकले, सड़क पर लाशें बिछी हुई थीं. पूरा शहर पार कर मनमोहन सिंह गए और एग्जाम दिया. ये बात अलग है कि उसका रिजल्ट कभी नहीं आया.
एक दिन मनमोहन के पिता को भाई का टेलीग्राम मिला, ‘मां सुरक्षित हैं, पापा को मार डाला’. मोहन की दादी को एक मुसलमान परिवार ने शरण दी थी. जिससे उनकी जान बच गई थी.

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9. ऊंची हील, सफ़ेद सलवार कमीज़ में मिलीं गुरशरन

जवान मनमोहन लंदन से पढ़कर आया था. जाहिर सी बात है, शादी के मार्केट में खूब डिमांड थी. एक पैसेवाले घर से रिश्ता आया. दहेज़ में फ़िएट कार दे रहे थे. लेकिन लड़की केवल स्कूल भर तक पढ़ी हुई थी. मनमोहन ने कहा, दहेज़ नहीं चाहिए. पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए. तब उनके के परिवार को जानने वाली बसंत कौर मनमोहन के लिए गुरशरन का रिश्ता लेकर आईं. बसंत गुरशरन की बड़ी बहन के पति को जानती थीं. गुरशरन की मां मनमोहन से बसंत के घर पर मिलीं. और लड़का इतना पसंद आया, कि तुरंत अपनी बेटी को बुलवा लिया. और दोनों को अकेले बात करने भेज दिया. ये वो दिन था जब मनमोहन ने गुरशरन को पहली बार देखा था. सफ़ेद सलवार कमीज़, सफ़ेद दुपट्टे, और हील वाली सैंडल में.

10. लेकिन इश्क की हद देखिए

गुरशरन को गाने का खूब शौक था. लेकिन रियाज छूट गया था. एक म्यूजिक कम्पटीशन में हिस्सा लिया. उनके होने वाले पति मनमोहन भी आए थे वहां. प्रोग्राम के बाद गुरशरन के गुरु ने उनकी खूब बुराई की. कहा बेहद बेसुरा गाया. लेकिन मनमोहन का इश्क देखिए. बोले गुरूजी गलत कह रहे हैं. तुमने खूब अच्छा गया. और घर छोड़ने के पहले अगले दिन सुबह के नाश्ते का न्योता दिया. होने वाली बीवी को इम्प्रेस करने के लिए अंग्रेजी ब्रेकफास्ट मंगवाया. कॉर्नफ्लेक्स और अंडे. गुरशरन कहती हैं कि न तो कॉर्नफ्लेक्स में स्वाद था. और अंडे तो वाहियात थे.

11. और नहीं खिंच पाईं शादी की तस्वीरें

गुरशरन और मनमोहन की शादी की तस्वीरें नहीं हैं. क्योंकि मनमोहन के घर वाले फोटोग्राफर अरेंज करना भूल गए थे. दुल्हन की विदाई के कपड़े तक लाना भूल गए थे. गुरशरन अपनी शादी वाले सलवार कमीज़ में ही विदा हुई. गुरशरन कहती हैं कि ये घर तबेले जैसा था. पूरा घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था. उन्हें छत पर एक कमरा मिला था. अगले दिन गुरशरन ससुर के सामने अपना सर ढंकने की कोशिश कर रही थीं. ससुर ने कहा, इसकी कोई जरूरत नहीं. चार दिन बाद मनमोहन और गुरशरन चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए.

Sunday, 18 September 2016

एक हैवान की हैवानियत

कहानी शहाबुद्दीन की जिसने दो भाइयों को तेजाब से नहला दिया था

lalu protege shahabuddin walks out of jail after 11 years

1300 गाड़ियों का काफिला लेकर जेल से चला शहाबुद्दीन। काफिला गुजर रहा था, टोल टैक्स वाले साइड में खड़े थे। उसी में कई सारे और लोग भी पार हो गए शहाबु के साथ। 
एक दुर्दांत अपराधी शहाबुद्दीन जेल से छूटता है और जनता उसके लिए जय-जयकार करती है। अपराधी खुलेआम बोलता है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘परिस्थितियों का नेता’ है, लालू प्रसाद यादव मेरा नेता है। 
क्योंकि इसी मुख्यमंत्री ने 11 साल पहले शहाबुद्दीन को जेल भिजवाया था, और अब परिस्थितियां ऐसी हैं कि शहाबुद्दीन के नेता लालू प्रसाद यादव के समर्थन से नीतीश मुख्यमंत्री बने हुए हैं। 
शहाबुद्दीन का जेल से छूटना कोई आश्चर्यचकित करने वाली घटना नहीं है। लालू की पार्टी के सत्ता में आते ही ये कयास लगना शुरू हो गया था। लालू के जंगल राज में शहाबुद्दीन जैसा गुंडा ही वोट बटोरता था। जेल से भी जीत जाता था शहाबुद्दीन। सीवान में इसे चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं थी। ‘साहब’ का नाम ही काफी था। वो वक़्त था, जब शहाबुद्दीन की फोटो सीवान जिले की हर दुकान में टंगी होती थी। सम्मान में नहीं, डर के चलते। अभी सीवान से सांसद हैं बीजेपी के ओमप्रकाश यादव। पंद्रह साल पहले शहाबुद्दीन ने ओमप्रकाश को सरेआम दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था सीवान में। 

राजेंद्र प्रसाद के जीरादेई से ही ये गुंडा बना था विधायक

अस्सी के दशक में बिहार का सीवान जिला तीन लोगों के लिए जाना जाता था। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, सिविल सर्विसेज़ टॉपर आमिर सुभानी और ठग नटवर लाल, राजेंद्र प्रसाद सबके सिरमौर थे। आमिर उस समय मुसलमान समाज का चेहरा बने हुए थे, और नटवर के किस्से मशहूर थे। उसी वक़्त एक और लड़का अपनी जगह बना रहा था। शहाबुद्दीन जो कम्युनिस्ट और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ खूनी मार-पीट के चलते चर्चित हुआ था। इतना कि "शाबू-AK 47" नाम ही पड़ गया। 1986 में हुसैनगंज थाने में इस पर पहली FIR दर्ज हुई थी। आज उसी थाने में ये "A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर" है। मतलब वैसा अपराधी जिसका सुधार कभी नहीं हो सकता। 
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अस्सी के दशक में ही लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पक्की कर रहे थे।शहाबुद्दीन लालू के साथ हो लिया, मात्र 23 की उम्र में 1990 में विधायक बन गया। विधायक बनने के लिए 25 मिनिमम उम्र होती है। फिर ये अपराधी दो बार विधायक बना और चार बार सांसद। 1996 में केन्द्रीय राज्य मंत्री बनते-बनते रह गया था। क्योंकि एक केस खुल गया था। वो तो हो गया, पर लालू को जिताने के लिए इसकी जरूरत बहुत पड़ती थी। उनके लिए ये कुछ भी करने को तैयार था। और लालू इसके लिए इसी प्रेम में बिहार में अपहरण एक उद्योग बन गया। सैकड़ों लोगों का अपहरण हुआ, बिजनेसमैन राज्य छोड़-छोड़ के भाग गए, कोई आना नहीं चाहता था। इसी दौरान और भी कई अपराधी आ गए। 

"पर शहाबुद्दीन जैसा कोई नहीं था। बोलने में विनम्र, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का जहीन तरीके से प्रयोग। ‘न्यायिक प्रक्रिया’ में पूरा भरोसा। चश्मे, महंगे कपड़े और स्टाइल और लालू का आशीर्वाद।"


इसके अपराधों की लिस्ट वोटर लिस्ट जैसी है


इसके अपराधों की लिस्ट बहुत लम्बी है। बहुत तो ऐसे हैं जिनका कोई हिसाब नहीं है, जैसे सालों तक सीवान में डॉक्टर फीस के नाम पर 50 रुपये लेते थे। क्योंकि साहब का ऑर्डर था रात को 8 बजने से पहले लोग घर में घुस जाते थे। क्योंकि शहाबुद्दीन का डर था। कोई नई कार नहीं खरीदता था। अपनी तनख्वाह किसी को नहीं बताता था, क्योंकि रंगदारी देनी पड़ेगी। शादी-विवाह में कितना खर्च हुआ, कोई कहीं नहीं बताता था। बहुत बार तो लोग ये भी नहीं बताते थे कि बच्चे कहां नौकरी कर रहे हैं। कई घरों में ऐसा हुआ कि कुछ बच्चे नौकरी कर रहे हैं, तो कुछ घर पर ही रह गए, क्योंकि सारे बाहर चले जाते तो मां-बाप को रंगदारी देनी पड़ती। धनी लोग पुरानी मोटरसाइकल से चलते और कम पैसे वाले पैदल। लालू राज में सीवान जिले का विकास यही था।

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पर इन्हीं अपराधों ने शहाबुद्दीन को जनाधार बना दिया। वो अपने घर में जनता अदालत लगाने लगा। लोगों की समस्याएं मिनटों में निपटाई जाने लगीं। किसी का घर किसी ने हड़प लिया। साहब का इशारा आता था। अगली सुबह वो आदमी खुद ही खाली कर जाता। साहब डाइवोर्स प्रॉब्लम भी निपटा देते थे। जमीन की लड़ाई में तो ये विशेषज्ञ थे। कई बार तो ऐसा हुआ कि पीड़ित को पुलिस सलाह देती कि साहब के पास चले जाओ। एक दिन एक पुलिस वाला भी साहब के पास पहुंचा था। प्रमोशन के लिए, एक फोन गया, हो गया प्रमोशन।

"जनता इन छोटे-छोटे फायदों में इतना मशगूल हो गई कि इसके अपराधों की तरफ ध्यान देना भूल गई। या यूं कहें कि डर और थोड़े से फायदे ने दिमाग ही कुंद कर दिया था। लोगों ने देखना बंद कर दिया कि इसने कितनी जमीनें हड़पीं, कितने हथियार पाकिस्तान से मंगवाए, नतीजन ये जीतता रहा।"


जेल जाने से पहले इसने पुलिस पर फायरिंग की, सांसद बना.....!



इसकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि पुलिस और सरकारी कर्मचारियों पर इसने हाथ उठाना शुरू कर दिया। मार्च 2001 में इसने एक पुलिस अफसर को थप्पड़ मार दिया। इसके बाद सीवान की पुलिस बौखला गई। एकदम ही अलग अंदाज में पुलिस ने दल बनाकर शहाबुद्दीन पर हमला कर दिया। गोलीबारी हुई, दो पुलिसवालों समेत आठ लोग मारे गए पर शहाबुद्दीन पुलिस की तीन गाड़ियां फूंककर भाग गया नेपाल। उसके भागने के लिए उसके आदमियों ने पुलिस पर हजारों राउंड फायर कर घेराबंदी कर दी थी। 

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1999 में इसने कम्युनिस्ट पार्टी के एक कार्यकर्ता को किडनैप कर लिया था। उस कार्यकर्ता का फिर कभी कुछ पता ही नहीं चला। इसी मामले में 2003 में शहाबुद्दीन को जेल जाना पड़ा। पर इसने ऐसा जुगाड़ किया कि जेल के नाम पर ये हॉस्पिटल में रहता था। वहीं पंचायत लगाता। इसके आदमी गन लेकर खड़े रहते। पुलिस से लेकर हर व्यवसाय का आदमी इससे मदद मांगने आता। एक आदमी तो इसके लिए गिफ्ट में बन्दूक लेकर आया था, और ये हॉस्पिटल कानूनी तौर पर जेल था। इसके जेल जाने के आठ महीने बाद 2004 में लोकसभा चुनाव था। इस अपराधी को चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं पड़ी,और जीत गया, ओमप्रकाश यादव इसके खिलाफ खड़े हुए थे। वोट भी लाये, पर चुनाव ख़त्म होने के बाद उनके आठ कार्यकर्ताओं का खून हो गया।
2005 में सीवान के डीएम सी के अनिल और एसपी रत्न संजय ने शहाबुद्दीन को सीवान जिले से तड़ीपार किया। एक सांसद अपने जिले से तड़ीपार हुआ, ये बिहार के लिए अनोखा क्षण था। फिर इसके घर पर रेड पड़ी, पाकिस्तान में बने हथियार, बम सब मिले। ये भी सबूत मिले कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से इसके संबंध हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूछा था कि सांसद होने के नाते तुम्हें वैसे हथियारों की जरूरत क्यों है जो सिर्फ आर्मी के पास हैं, सीआरपीएफ और पुलिस के पास भी नहीं हैं। 

जेल जाने से कम नहीं हुआ इसका रुतबा


इतना सब होने के बाद भी इसका घमंड कम नहीं हुआ। इसने जेलर को धमकी दी कि तुमको तड़पा-तड़पा के मारेंगे। सुनवाई पर इसका वकील जज को भी धमकी दे आता था। इसके आदमी जेल के लोगों को धमकाते रहते। 2007 में कम्युनिस्ट पार्टी के ऑफिस में तोड़-फोड़ करने के आरोप में इसको दो साल की सजा हुई, फिर कम्युनिस्ट पार्टी के वर्कर की हत्या में इसे आजीवन कारावास की सजा हुई। सिर्फ एक गवाह था इस मामले का, उसने बड़ी हिम्मत दिखाई, किसी तरह बच-बचकर रहा था, और इस अपराधी को जेल भिजवाया।

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एक और मुन्ना मर्डर केस में विटनेस राजकुमार नें  कुछ यूं बयान दिया था.........!

"मैं अपने दोस्त मुन्ना के साथ मोटरसाइकिल पर जा रहा था। तभी शहाबुद्दीन और उसके आदमी कारों से आये, और हम पर फायरिंग शुरू कर दी। एक गोली टायर में लगी और हम लोग गिर गए, तब शहाबुद्दीन ने मुन्ना के पैर में गोली मार दी, और उसे घसीट के ले जाने लगा। बाद में पता चला कि मुन्ना को एक चिमनी में फेंक दिया गया था।" 


तब तक लालू राजनीति से बाहर हो चुके थे, पर इसकी शक्ति कम नहीं हुई थी, कोई इसके खिलाफ खड़ा होने की भी नहीं सोचता था। 1997 में JNU से एक छात्र नेता चंद्रशेखर गए थे नई राजनीति करने, उनको भी मार दिया गया। उसके बाद से सिर्फ एक नेता ओमप्रकाश यादव ही लगे रहे। 2009 में शहाबुद्दीन को इलेक्शन कमीशन ने चुनाव लड़ने से बैन कर दिया, तब इसकी पत्नी हिना को हराकर ओमप्रकाश सांसद बने।
अब बिहार की राजनीति में ये बहुत पीछे चला गया, पर सीवान में नहीं, वहां पर जेल से ही इसके फैसले सुनाये जाते। कहते हैं कि जेल इसके लिए बस नाम भर की थी। सारे इंतजाम रहते। जब कोई हत्या हो जाती तो जेल में रेड पड़ती। एक अफसर के मुताबिक शहाबुद्दीन मुस्कुराता रहता, चुपचाप जेब से निकालकर मोबाइल फोन पुलिस के हाथ में दे देता, ये कई बार हुआ।

2014 लोकसभा चुनाव से इसके बाहर आने की  संभावना  बढ़ने लगी

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2014 में शहाबुद्दीन फिर लोगों की जबान पर आया। राजीव रंजन हत्याकांड में अपने दो भाइयों की हत्या के वो एकमात्र गवाह थे। उनके दो भाइयों को 2004 में तेजाब से नहलाकर मार दिया गया था, क्योंकि रंगदारी को लेकर इसके आदमियों और राजीव के भाइयों में बहस हो गई थी। इन लोगों ने बन्दूक दिखाई और राजीव के भाई ने तेजाब, दोनों भाई मारे गए। परिवार को पुलिस ने कह दिया कि सीवान छोड़कर चले जाइये, और अब कोर्ट में पेशी से पहले राजीव को मार दिया गया। 2016 में एक पत्रकार ज्ञानदेव रंजन की हत्या कर दी गई। उसमें भी इसी का नाम आया। इन दो भाइयों की हत्या वाले मामले में ही इसको बेल मिली है, क्योंकि कोई गवाह नहीं था। 

ये जेल से बाहर आ गया है। बिहार में बहार आ गई है। भारत में राजनीति और अपराध के रिश्ते का सबसे बड़ा पैमाना है शहाबुद्दीन। इसका छूटना वो सारे टूटे कांटे दिखाता है, जो हमारे देश की डेमोक्रेसी में धंसे हैं। इसके बाहर आने के खिलाफ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है, देखते हैं क्या होता है।

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Wednesday, 14 September 2016

भूतों का संसार

     अगर आप नहीं मानते भूतों का वजूद तो राजस्थान की इन डरावनी जगह पर एक बार जाएं ज़रूर

                        राजस्थान के बारे में सुनते ही आपके ज़हन में रेतीले टीले, रंग-बिरंगे पारम्परिक परिधान पहने हुए लोग आ जाते होंगे. इस भूमि को वीरों की भूमि कहा जाता है. भारत के इतिहास में राजस्थान के राजपुताने की अलग ही शान है. पर आपने कभी यह भी सोचा है, कि इस रंगीले राजस्थान में कुछ भयानक और डरावनी जगहें भी हैं. जहां जाते ही आपके चेहरे का रंग उड़ जायेगा। 


इन जगहों की फिज़ाओं में कुछ ऐसी वीरानी छाई है, जो आप के अन्दर एक सिहरन सी पैदा कर देगी. तो आज मैं अंकित त्रिपाठी आप को राजस्थान की उन जगहों की यात्रा करवाता हूँ, जहां एक बार जाने के बाद दोबारा जाने से पहले आप हज़ार बार सोचेंगे। 

1. भानगढ़ का किला, अलवर



                      अलवर के भानगढ़ का किला राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारत की सबसे कुख्यात भुतहा जगह के रूप में जाना जाता है। इसे 17वीं शताब्दी में महाराजा माधो सिंह द्वारा बनवाया गया था। इस किले में डरावनी आत्माओं का वास माना जाता है। इस जगह के भुतहा होने के पीछे एक रहस्यमयी घटना जुड़ी हुई है। किसी समय यहां एक तांत्रिक रहता था। वह भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती की सुन्दरता पर मोहित हो गया, उसने राजकुमारी को अपना बनाने के लिए काले जादू का सहारा लिया, लेकिन वह असफल हुआ। इस बात का राजा को पता चलने पर उसे मौत के घाट उतार दिया गया। मरते-मरते तांत्रिक भानगढ़ रियासत को श्राप दे गया, कि यहां के रहने वाले लोगों की आत्माओं को कभी मुक्ति नहीं मिलेगी। उस दिन से इस शहर के उजड़ने की कहानी शुरू हुई, जो शहर के पूरी तरह खत्म होने पर ही रुकी। आज यहां इमारतों के केवल खंडहर बचे हैं। रात हो जाने पर यहां केवल भूतों का राज रहता है। इस वजह से इस किले में पर्यटकों को रात में जाने की इजाज़त नहीं दी जाती है। रात होते ही यह किला बंद कर दिया जाता है। अंधेरे में यहां की फिज़ाओं में डर का वर्चस्व चारों तरफ़ अपनी मौजुदगी दिखा रहा होता है। 

2. कुलधरा गांव, जैसलमेर


                      यह गांव भुतहा होने की वजह से पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है। यहां के बाशिन्दों ने एक अय्यास दीवान से अपनी बेटियों को बचाने के लिए इस गांव को खाली कर दिया था। जाते-जाते वो श्राप दे गये, कि यहां अब कोई नहीं बस पायेगा। उस दिन से लेकर आजतक यह गांव वीरान पड़ा है। यहां घुमने आने वाले पर्यटकों को महिलाओं के बात करने, उनकी चूड़ियों के खनकने की आवाज़ें आती हैं। गांव वालों के द्वारा बिताये गये उनकी ज़िन्दगी के पल आज भी यहां की वीरान गलियों में जीवन्त हो उठते हैं। स्थानीय प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक गेट लगा दिया है। रात होने के बाद वहां जाने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता है। 

3. बृजराज भवन, कोटा


                           सन 1857 में यहां ब्रिटिश रेजिडेंट मेजर चार्ल्स बर्टन रहते थे। 1857 में हुई क्रांति के समय यहां हुए विद्रोह में उन्हें मार दिया गया था। कहा जाता है कि तब से मेजर की आत्मा इस जगह भटक रही है। ख़ुद कोटा की महारानी ने 1980 में मेजर के भूत को देखा था। यहां आने वाले कई पर्यटकों ने भी मेजर के भूत को देखने की बात स्वीकारी है। कुछ इतिहासकारों का कहना है विद्रोह के समय मेजर के सिर को काटकर पूरे शहर में घुमाया गया था। इस तरह की दर्दनाक मौत के बाद से मेजर की आत्मा पूरी मुस्तैदी से आज भी अपनी ड्यूटी पर तैनात है। मेजर की आत्मा जब भी रात की ड्यूटी पर तैनात किसी कर्मचारी को सोते हुए देखती है, तो उसे थप्पड़ मारने लग जाती है। 

4. जगतपुरा, जयपुर


इस जगह का नाम भी आपने शायद न सुना हो, मगर रात होते ही इस रिहायशी इलाके में लोगों ने गलियों में भूतों के भटकने के दावे किए हैं. यहां अकसर एक सफेद साया रात के अंधेरों में घूमते हुए देखा गया है। 


आत्माओं का एहसास वो चीज़ है, जिसे जिसने महसूस किया उसने माना है। जिसने नहीं किया उसने नकारा है। ये बिल्कुल प्यार के उस एहसास की तरह है, जिसे केवल प्यार करने वाले ने ही जाना है। आत्माएं अपने किसी लगाव की वजह से ही दूसरे शरीर में जाने से अपने आप को रोके रखती है। उनकी ज़िन्दगी से जुड़ी कुछ ख़ास घटनाएं उन्हें यहां बने रहने पर मजबूर करती हैं। किसी से हद से ज़्यादा लगाव करना किसी न किसी समस्या को जन्म ज़रूर देता है। आप इस बात का ध्यान रखियेगा...!

धन्यवाद.........! 


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Thursday, 8 September 2016

"दि हिरोइन ऑफ दि हाईजैक"

                                                              "दि हिरोइन ऑफ दि हाईजैक

                                                                   

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नीरजा भनोट 
             मित्रों नमस्कार आज मैं "अंकित त्रिपाठी" आप सब के समक्ष एक ऐसी साहसी और बहादुर लड़की की सच्ची घटना बताने जा रहा हूँ जिसने अपने अदम्य साहस और बहादुरी  से न केवल कई यात्रियों की जान बचाई अपितु समस्त देशवासियों को एक सीख प्रदान की और जिसने समस्त विश्व में भारत का नाम रोशन किया  जिसने अपनी जान की परवाह ना करते हुए 376 यात्रियों की जान बचाई। 

जी हां मित्रों आज मैं अंकित त्रिपाठी आप सब के समक्ष एक ऐसी सच्ची घटना प्रस्तुत करने जा रहा हूँ जिसे पढ़ कर आप सब की आँखे नम हो जाएंगी। मित्रों यह घटना 5 सितम्बर 1986 की है जब मुम्बई से अमेरिका जाने वाली "पैन एम 73 फ्लाइट" जिसे पाकिस्तान के करांची एअरपोर्ट पर अपहरण कर लिया गया था। उस समय विमान में 376 यात्री और 19 क्रू सदस्य थे। मित्रों यह घटना उस लड़की की है जो उसी विमान की सीनियर परिचालिका थीं जिसका नाम आज पूरा विश्व गर्व से लेता है और वह लड़की कोई और नहीं अपितु "नीरजा भनोट " थीं। 

उनका जन्म चण्डीगढ़ में हुआ था। वह रमा भनोट और हरीश भनोट की बेटी थी। नीरजा का विवाह वर्ष 1985 में संम्पन्न हुआ और अपने पति के साथ खाड़ी देश को चली गई लेकिन कुछ दिनों बाद दहेज़ के दबाव को ले कर इस रिश्ते में खटास आ गई और विवाह के दो महीने बाद नीरजा वापस मुम्बई आ गई। मुम्बई आने के बाद उन्होंने पैन एम 73 में विमान परिचालिका की नौकरी के लिए आवेदन किया और चुने जाने के बाद मियामी में ट्रेनिंग के बाद वापस लौटीं, और अपनी नौकरी पूरी ईमानदारी से करने लगीं। 

मित्रों आतंकवादी जिन्होंने विमान का अपहरण किया था वो जेल में कैद उनके सदस्यों को रिहा कराना चाहते थे। जैसे ही आतंकवादियों ने विमान का अपहरण किया वैसे ही नीरजा ने इसकी सूचना चालक स्थान पर बैठे कर्मचारी को दे दी एअरक्राफ्ट के बाकी सभी सदस्य चाहते थे की अब विमान अपनी जगह से किसी भी हालत में ना उड़े। उन सब में नीरजा ही सबसे सीनियर परिचालिका थीं इसलिए नीरजा ने ही उसे अपने हाथों में लिया। जब विमान का अपहरण हुआ तब वह विमान के अपहरण होने की जानकारी चालक स्थान पर बैठे कर्मचारी तक पहुँचाना चाहती थीं किन्तु उन्हें रोक दिया गया लेकिन फिर भी उन्होंने कोड की भाषा में अपनी बातों को कर्मचारियों तक पहुंचाया, जैसे ही विमान चालक तक नीरजा की बात पहुंची तो उस विमान के पायलेट, सह-पायलेट और फ्लाइट इंजीनियर विमान को वही छोड़ कर भाग गए। फिर उन आतंकवादियों ने नीरजा से सभी यात्रियों के पासपोर्ट इकट्ठे करने को कहा ताकि उनमे से वो अमेरिकन्स को पहचान सकें। उन आतंकवादियों का मुख्य लक्ष्य अमेरिकी यात्रियों को मारना था, इसलिए नीरजा ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ 41 अमेरिकन्स के पासपोर्ट छिपा दिए जिनमे से कुछ उन्होंने सीट के नीचे और कुछ ढलान वाली जगह पर छुपा दिए। 

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मित्रों उस विमान में बैठे 41 अमेरिकियों में से सिर्फ दो को ही आतंकवादी मारने में सफल हुए। फिर आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सरकार से विमान में पायलेट भेजने को कहा, परन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। फिर आतंकवादियों ने एक ब्रिटिश नागरिक को विमान के द्वार पर ला कर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि वो पायलेट नहीं भेजेंगे तो वो उसे मार देंगे तभी नीरजा ने आतंकवादियों से से बात कर उस ब्रिटिश नागरिक को बचा लिया। 
मित्रों यहीं से पता चलता है कि नीरजा कितनी साहसी, बहादुर और सूझ-बूझ वाली महिला थीं। इसके पश्चात कुछ घण्टों बाद उस विमान फ्यूल समाप्त हो गया और विमान में अंधेरा हो गया जिसके कारण अपहरणकर्ताओं ने अँधेरे में ही गोलीबारी शुरू कर दी। तभी अँधेरे का फायदा उठाते हुए नीरजा ने अपातकालीन द्वार खोलकर यात्रियों को बाहर निकालने की कोशिश की। नीरजा ने जब द्वार खोला तब वो चाहती तो पहले स्वयं को बचा सकती थी, परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया और सभी यात्रियों को बाहर निकालने के बाद बचे हुए तीन बच्चों को बचाते हुए नीरजा उन आतंकवादियों की गोली शिकार हो गई जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। 

मित्रों उनमे से एक बच्चा जो उस समय महज 7 साल का था वह नीरजा भनोट की बहादुरी से प्रभावित होकर एयरलाइन्स में कैप्टन बना। मित्रों महज 23 साल की उम्र में इतनी बहादुरी और साहस से नीरजा ने सभी यात्रियों की जान बचाई थी। 
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डाक टिकट 
मित्रों नीरजा भनोट को भारत सरकार ने इस अदभुद वीरता और अदम्य साहस के लिए मरणोपरांत "अशोक चक्र" से सम्मानित किया गया जो कि भारत का सर्वोच्च शान्तिकालीन वीरता पुरस्कार है। अपनी वीरगति के समय नीरजा की उम्र महज 23 साल की ही थी। इस प्रकार वह यह पदक प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला और सबसे काम आयु की महिला नागरिक बनीं। मित्रों पाकिस्तान की ओर से उन्हें "तमगा - ए - इन्सानियत" से नवाजा गया। वर्ष 2004 में उनके सम्मान में भारत सरकार ने एक डाक टिकेट भी जारी किया और अमेरिका ने वर्ष 2005 में उन्हें "जस्टिस फॉर क्राइम" पुरस्कार से सम्मानित किया। 

मित्रों इतना ही नहीं अपितु उनकी याद में एक संस्था "नीरजा भनोट पैन एम न्यास" की स्थापना भी हुई जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए महिलाओं को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है। उनके परिजनों द्वारा स्थापित यह संस्था प्रतिवर्ष दो पुरस्कार प्रदान करती है जिसमे से एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है, और दूसरा भारत में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने और संघर्ष के लिए प्रदान किया जाता है। प्रत्येक पुरस्कार की 1,50,000 धनराशि है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्रॉफी और स्मृतिपत्र भी प्रदान किया जाता है। 

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1- अशोक चक्र  -  भारत 
2- फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हेरोइज़्म अवार्ड  -  यू एस ए  (U S A )  
3- जस्टिस फॉर क्राइम अवार्ड  -  यूनाइटेड स्टेट  (कोलम्बिया)
4- विशेष बहादुरी पुरस्कार  -  यूनाइटेड स्टेट ( जस्टिस विभाग)
5- तमगा - ए - इन्सानियत   -  पाकिस्तान 

                                                    "मित्रों त्याग और अदम्य साहस की इस महान प्रतिमूर्ति और भारत की इस वीर बेटी को अंकित त्रिपाठी की ओर से शत-शत नमन एवं भावपूर्ण श्रद्धांजलि.........!" 

                                                                                                                         धन्यवाद 
                                                                                                                   अंकित त्रिपाठी



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