Wednesday, 7 June 2017

सोंच बनती है हकीकत

      Law of Attraction
     
         सोच बनती है हकीक़त

दोस्तों आज मैं अंकित त्रिपाठी आप सबको अपनी सोच की शक्ति से अवगत कराने जा रहा हूं।

दोस्तों आपसब ने “Om Shanti Om”  का ये dialogue“अगर किसी  चीज़  को  दिल  से  चाहो  तो  सारी  कायनात  उसे  तुम  से  मिलाने  में  लग  जाती  है”ज़रूर सुना होगा. इसी को सिद्धांत के रूप में Law of Attraction कहा जाता है. ये वो सिद्धांत है जो कहता है कि आपकी सोच हकीकत बनती है. Thoughts become things. For example:  अगर आप सोचते हैं की आपके पास बहुत पैसा है तो सचमुच आपके पास बहुत पैसा हो जाता है, यदि आप सोचते हैं कि मैं  हमेशा गरीबी में ही जीता रह जाऊंगा, तो ये भी सच हो जाता है.
शायद सुनने में अजीब लगे पर ये एक सार्वभौमिक सत्य है. A Universal Truth. यानि हम अपनी सोच के दम पर जो चाहे वो बन सकते हैं. और ये कोई नयी खोज नहीं है भगवान्  बुद्धने  भी कहा  है  “हम जो कुछ भी हैं वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है. ”   स्वामी  विवेकानंद  ने भी यही बात इन शब्दों में कही है ” हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं. विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं.”
पर इतनी बड़ी बात को इतनी आसानी से मान लेना बहुत कठिन है. आपके मन में इसे लेकर कई तरह के सवाल उठ सकते हैं. और आज पर हम कुछ इसी तरह के सवालों का समाधान जानने की कोशिश करेंगे. आज का ये लेख इस विषय पर सबसे ज्यादा पढ़े गए लेखों में से एक  “ The  Law of Attraction” काHindiTranslation  है. इसेSteve Pavlina  ने लिखा है.
THE LAW OF ATTRACTION
आकर्षण  का  सिद्धांत
The Law of Attractionया  आकर्षण  का  सिद्धांत  यह  कहता  है  कि  आप  अपने  जीवन  में  उस  चीज  को  आकर्षित  करते  हैं  जिसके  बारे  में  आप  सोचते  हैं .आपकी  प्रबल सोच हकीक़त  बनने  का  कोई  ना  कोई  रास्ता  निकाल लेती है .लेकिन  Law of Attraction कुछ  ऐसे  प्रश्नों  को  जन्म  देता  है  जिसके  उत्तर  आसान  नहीं  हैं .पर  मेरा  मानना  है  कि  problem Law of Attraction कि  वजह  से  नहीं  है   बल्कि  इससे  है  कि  Law of Attraction को  objective reality (वस्तुनिष्ठ वास्तविकता ) में  कैसे  apply करते  हैं .
यहाँ  ऐसे  ही  कुछ  problematic questions दिए  गए  हैं  ( ये  उन  questions का  generalization हैं  जो  मुझे  email द्वारा  मिले  हैं )
*. क्या  होता है  जब  लोगों  की  intention (इरादा,सोच,विचार,उद्देश्य)  conflict करती  है ,जैसे  कि  दो  लोग  एक  ही  promotion के  बारे  में  सोचते  हैं , जबकि एक  ही  जगह  खाली   है ?
*.क्या  छोटे  बच्चों , या  जानवरों  की  भी  intentions काम  करती  है ?
*.अगर  किसी  बच्चे  के साथ  दुष्कर्म  होता  है  तो  क्या  इसका  मतलब  है  कि  उसने  ऐसा  इरादा  किया  था ?
*.अगर  मैं  अपनी  relation अच्छा  करना  चाहता  हूँ  लेकिन  मेरा / मेरी  spouse इसपर  ध्यान  नहीं  देती , तो  क्या  होगा ?
ये  प्रश्न  Law of Attraction की  possibility को  कमज़ोर  बनाते  हैं .कभी – कभार  Law of Attraction में  विश्वास  करने  वाले  लोग  इसे  justify करने  के  लिए  कुछ  ज्यादा  ही  आगे  बढ़  जाते  हैं . For Exapmle, वो  कहते  हैं  कि  बच्चे  के  साथ  दुष्कर्म  इसलिए  हुआ  क्योंकि  उसने  इसके  बारे  में  अपने  पिछले  जनम  में  सोचा  था . भाई , ऐसे  तो  हम किसी  भी  चीज  को  explain कर  सकते  हैं , पर मेरी  नज़र  में  तो  ये  तो  जान  छुड़ाने  वाली  बात  हुई .

मैं  औरों  द्वारा  दिए  गए  इन  प्रश्नों  के  उत्तर  से  कभी  भी  satisfy नहीं  हुआ , और  यदि  Law of Attraction में  विश्वास  करना  है  तो  इनके  उत्तर  जानना  महत्त्वपूर्ण  है .कुछ  books इनका  उत्तर  देने  का  प्रयास  ज़रूर  करती  हैं  पर  संतोषजनक  जवाब  नहीं  दे  पातीं . पर  subjective reality (व्यक्ति – निष्ठ वास्तविकता )के  concept में इसका  सही  उत्तर  ढूँढा जा  सकता  है .
Subjective Realityएक  belief system (विश्वास प्रणाली) है  जिसमे
(1)   सिर्फ  एक consciousness  (चेतना) है ,
(2)   आप  ही  वो  consciousness  हैं ,
(3)   हर  एक  चीज , हर  एक   व्यक्ति,  जो  वास्तविकता  में  है वो आप  ही  की  सोच  का  परिणाम  है .
शायद  आप  को  आसानी से दिखाई  ना  दे  पर  subjective reality Law of Attraction के  सभी  tricky questions का  बड़ी  सफाई  से  answer देती  है .  मैं  explain करता  हूँ ….
Subjective reality में  केवल  एक  consciousness होती   है – आपकी  consciousness. इसलिए पूरे ब्रह्माण्ड में intentions का एक ही श्रोत होता है -आप . आप भले ही वास्तविकता में तमाम लोगों को आते-जाते, बात करते देखें , वो सभी आपकी consciousness के भीतर exist करते हैं. आप जानते हैं कि आपके सपने इसी तरह काम करते हैं,पर आप ये नहीं realize करते की आपकी waking reality एक तरह का सपना ही है. वो सिर्फ इसलिए सच लगता है क्योंकि आप विश्वास करते हैं कि वो सच है.
चूँकि और कोई भी जिससे आप मिलते हैं वो आपके सपने का हिस्सा हैं, आपके अलावा किसी और की कोई intention नहीं हो सकती.सिर्फ आप ही की intentions हैं. पूरे Universe में आप अकेले सोचने वाले व्यक्ति हैं.
यह ज़रूरी है कि subjective reality में “आप” को अच्छे से define किया जाये . “आप” आपका शरीर नहीं है. “आप” आपका अहम नहीं है. मैं यह नहीं कह रहा हूँ की आप एक conscious body हैं जो unconscious मशीनों के बीच घूम रहे हैं. यह तो subjective reality की समझ के बिलकुल उलट है. सही viewpoint यह है कि आप एक अकेली consciousness हैं जिसमे सारी वास्तविकता घट रही है.
Imagine करिए की आप कोई सपना देख रहे हैं. उस सपने में आप वास्तव में क्या हैं ?  क्या आप वही हैं जो आप खुद को सपने में देख रहे हैं? नहीं, बिलकुल नहीं , वो तो आपके सपने का अवतार है. आप तो सपना देखने वाला व्यक्ति हैं.पूरा सपना आपकी consciousness में होता है. सपने के सारे किरदार आपकी सोच का परिणाम हैं, including  आपका खुद का अवतार.  दरअसल , यदि आप lucid dreaming सीख लें तो आप आपने सपने में ही अपने अवतार बदल सकते हैं. Lucid dreaming में आप वो हर एक चीज कर सकते हैं जिसको कर सकने में  आपका यकीन हैं.
Physical reality इसी तरह से काम करती है. यह ब्रह्माण्ड आप के सपने के  ब्रह्माण्ड की तुलना में  कहीं घना है, इसलिए यहाँ बदलाव धीरे-धीरे होता है. पर यह reality भी आपके विचारों के अनुरूप होती है, ठीक वैसे ही जैसे आपके सपने आपके सोच के अनुरूप होते है. “आप” वो dreamer हैं जिसके सपने में यह सब घटित हो रहा है. कहने का मतलब; यह एक भ्रम है कि और लोगों कि intentions है, वो तो बस आपकी सोच का परिणाम हैं.
Of course, यदि आप बहुत strongly believe करते हैं कि औरों की intentions हैं, तो आप अपने लिए ऐसा ही सपना बुनेंगे.पर ultimately वो एक भ्रम है.
तो आइये देखते हैं कि Subjective Reality  कैसे Law of Attraction के कठिन प्रश्नों का उत्तर देती है:
क्या  होता है  जब  लोगों  की intention (इरादा,सोच,विचार,उद्देश्य)  conflict करती  है ,जैसे  कि  दो  लोग  एक  ही  promotion के  बारे  में  सोचते  हैं , जबकि एक  ही  जगह  खाली   है ?
चूँकि आप अकेले  ही ऐसे  व्यक्ति हैं जिसकी intentions हैं, ये  महज   एक  internal conflict है – आपके  भीतर  का . आप  खुद  उस  thought(intention) को  जन्म  दे  रहे  हैं  कि  दोनों  व्यक्ति  एक  ही  position चाहते  हैं . लेकिन  आप  ये  भी  सोच  रहे  हैं  (intending) कि एक ही व्यक्ति को यह position मिल  सकती  है. .यानि  आप competition intend कर रहे हैं. यह पूरी  situation आप ही की creation है. आप competition में believe करते हैं, इसलिए आपके जीवन  में वही घटता  है. शायद आपकी  पहले  se ही  कुछ  belief है (thoughts and intentions)  कि  किसको  promotion मिलेगी , ऐसे  में  आपकी  उम्मीद  हकीकत  बनेगी. पर  शायद  आप  की  ये  belief हो  कि  life unfair है  uncertain है , तो  ऐसे  में  आपको  कोई  surprise मिल  सकता  है  क्योंकि  आप  वही  intend कर  रहे  हैं .
अपने यथार्थ  में  एक  अकेला  Intender होना   आपके  कंधे  पर  एक  भारी  जिम्मेदारी  डालता  है . आप  ये  सोच  कर  की  दुनिया  अनिश्चित  है  unfair है ,  आदि , अपनी  reality का control  छोड़  सकते  हैं , पर  आप  अपनी  जिम्मेदारी  नहीं  छोड़  सकते  हैं . आप  इस  Universe के एक  मात्र रचियता हैं . यदि  आप  युद्ध , गरीबी , बिमारी , इत्यादि  के  बारे  में  सोचेंगे  तो  आपको  यही  देखने  को  मिलेगा . यदि  आप  शांती , प्रेम , ख़ुशी  के  बारे  में सोचेंगे  तो  आपको  ये  सब  हकीकत में होते हुए दिखेगा .आप  जब  भी  किसी  चीज  के  बारे  में  सोचते  हैं  तो , तो  दरअसल  उस सोच को  वास्तविकता में प्रकट होने का आह्वान करते हैं.
क्या  छोटे  बच्चों , या  जानवरों  की  भी  intentions काम  करती  है ?
नहीं , यहाँ  तक  की  आपके  शरीर  की  भी  कोई  intention नहीं  होती  है —सिर्फ  आपके  consciousness की  intentions होती  हैं . आप  अकेले  हैं  जिसकी  intentions हैं , इसलिए  वो  होता  है  जो आप  बच्चे  या  जानवरों  के  लिए  सोचते  हैं . हर  एक  सोच एक  intention है , तो  आप  जैसे  भी  उनके बारे  में  सोचेंगे  यथार्थ  में  उनके साथ वैसा  ही  होगा . ये  धयन में  रखिये  की  beliefs hierarchical (अधिक्रमिक) हैं , इसलिए यदि  आपकी  ये  belief की  वास्तविकता  अनिश्चित  है , uncontrollable है  ज्यादा शशक्त है  तो  ये  आपकी  अन्य  beliefs, जिसमे  आपको  कम  यकीन  है , को  दबा देंगी . आपके  सभी  विचारों  का  संग्रह   ये  तय  करता  है  की आपको  हकीकत  में  क्या  दिखाई  देगा .
अगर  किसी  बच्चे  के  साथ  दुष्कर्म  होता  है  तो  क्या  इसका  मतलब  है  कि  उसने  ऐसा  इरादा  किया  था ?
नहीं . इसका  मतलब  है  की  आपने  ऐसा  intend किया  था . आप  child abuse के  बारे  में  सोच  कर  उससे  वास्तविकता में  होने के  लिए  intend करते  हैं .आप  जितना  ही  child abuse के  बारे  में  सोचेंगे ( या  किसी  और  चीज  के  बारे  में ) उतना  ही  हकीकत  में  आप  उसका  विस्तार  देखेंगे . आप  जिस  बारे  में  भी  सोचते  हैं  उसका  विस्तार  होता  है , और वो बस  आप तक  ही  सीमित  नहीं  होता  बल्की  पूरे  ब्रह्माण्ड  में  ऐसा  होता है .
अगर  मैं  अपनी  relation अच्छा  करना  चाहता  हूँ  लेकिन  मेरा / मेरी  spouse इसपर  ध्यान  नहीं  देती , तो क्या  होगा ?
यह  intending conflict का  एक  और  उदाहरण  है . आप  एक  intention अपने  अवतार  की  कर  रहे  हैं  और  एक  अपने  spouse की  , तो  जो actual intention पैदा  होती  है  वो  conflict की  होती  है . इसलिए  आप  जो  experience करते  हैं , depending on your higher order beliefs, वो  आपके  spouse के  साथ  आपका  conflict होता  है . अगर  आपकी  thoughts conflicted हैं  तो  आपकी  reality भी  conflicted होगी .
इसीलिए  अपने  विचारों  की  जिम्मेदारी  लेना  इतना  महत्त्वपूर्ण  है . यदि  आप  दुनिया  में  शांती  देखना  चाहते  हैं  तो  अपनी  reality में  हर एक  चीज  के  लिए  शांती  intend कीजिये . यदि  आप  loving relationship enjoy करना  चाहते  हैं  तो  सभी  के  लिए  loving relationships intend कीजिये . यदि  आप  ऐसा  सिर्फ  अपने  लिए  ही  intend  करते  हैं  और  दूसरों  के  लिए  नहीं  तो  इसका  मतलब  है  की  आप  conflict, division, separation  intend कर  रहे  हैं , और  as a result आप  यही  experience करेंगे .
अगर  आप  किसी  चीज  के  बारे  में  बिलकुल  ही  सोचना  छोड़  देंगे  तो  क्या  वो  गायब  हो  जाएगी ? हाँ , technically वो  गायब  हो  जाएगी . लेकिन  practically  आप  जिस  चीज  को  create कर  चुके  हैं  उसे  uncreate करना लगभग असंभव  है . आप  उन्ही  समस्यों  पर  focus कर  के  उन्हें  बढाते  जायेंगे . पर  जब  आप   अभी   जो  कुछ  भी  वास्तविकता  में  अनुभव  कर रहे  हैं  उसके  लिए  खुद  को 100 % responsible मानेंगे  तो  आप  में  वो  शक्ति  आ  जाएगी  जिससे  आप  अपने  विचारों  को  बदलकर  अपनी  वास्तविकता  को  बदल  सकते  हैं .
ये  सारी  वास्तविकता  आप  ही  की  बनाई  हुई  है . उसके  बारे  में  अच्छा  feel करिए .  विश्व  की  richness के  लिए  grateful रहिये .  और  फिर  अपने  decisions और  intentions से  उस  reality का  निर्माण  करना  शुरू  कीजिये  जो  आप  सच -मुच  चाहते  हैं .उस  बारे  में  सोचिये  जिसकी आप  इच्छा  रखते  हैं  , और  जो  आप  नहीं  चाहते  हैं उससे  अपना  ध्यान  हटाइए .  ये  करने  का  सबसे  आसान  और  natural तरीका  है  अपने  emotions पर  ध्यान  देना . अपनी  इच्छाओं  के  बारे  में  सोचना  आपको  खुश  करता  है  और  जो आप  नहीं  चाहते  हैं  उस  बारे  में  सोचना  आपको  बुरा  feel कराता  है . जब  आप  notice करें  की  आप  बुरा  feel कर  रहे  हैं  तो  समझ  जाइये  की  आप  किसी  ऐसी  चीज  के  बारे  में  सोच  रहे  हैं  जो  आप  नहीं  चाहते  हैं . वापस  अपना  focus उस  तरफ  ले  जाइये  जो  आप  चाहते  हैं , आपकी  emotional state बड़ी  तेजी  से  improve होगी . जब  आप  बार  बार  ऐसा  करने  लगेंगे  तब  आपको  अपनी  physical reality में  भी  बदलाव  आना  नज़र  आएगा , पहले  धीरे -धीरे  और  बाद  में  बड़ी  तेजी  से .
मैं  भी  आपकी  consciousness का  ही  परिणाम  हूँ . मैं  वैसे  ही  करता  हूँ  जैसा  की  आप  मुझसे  expect करते  हैं . यदि  आप  मुझे  एक  helpful guide के  रूप  में  expect करते  हैं , तो  मैं  वैसा  ही  बन  जाऊंगा . यदि  आप  मुझे  गहन और व्यवहारिक होना expect करते  हैं  तो  मैं  वैसा  बन  जाऊंगा . यदि  आप  मुझे  confused और  बहका हुआ  expect करते  हैं  तो  मैं  वैसा  बन  जाऊंगा . पर  मैं  ऐसा  कोई  “मैं ” नहीं  हूँ  जो  आपसे  अलग  है . मैं  बस  आपकी  creations में  से  एक  हूँ . मैं  वो  हूँ  जो  आप  मेरे  लिए  intend करते  हैं . और  कहीं  ना  कहीं  आप  पहले  से  ये  जानते  हैं , क्यों  है  ना ?

Sunday, 16 October 2016

एक कहानी दिल को छू लेने वाली


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 " एक सच्ची कहानी उसी की जुबानी "

मित्रों आप सभी को अंकित त्रिपाठी का नमस्कार.......!

मित्रों आज मैं आप सब को एक ऐसे लड़के के जीवन की एक सच्ची कहानी बताने जा रहा हूँ जिसने बचपन से ही अपने  जीवन में प्यार की कमी बहुत महसूस की जिसको हमेशा सब लोगों से नफरत और लोगों की घृणा ही नसीब हुई।
और हाँ मित्रों इस कहानी को झूठ मत समझना क्योंकि मित्रों उसने स्वयं अपनी जुबां अपना दर्द बयां किया है। मित्रों सिर्फ 27 वर्ष की आयु में इस लड़के ने बहुत  दुःख उठाए।
इतना सब होने पर भी वह हमेशा खुश रहने की कोशिश करता रहता खुद हँसता और दूसरों को भी हँसाता रहता था, हमेशा सबसे मज़ाक किया करता और सबको खुश रखने की कोशिश करता रहता और इसीलिए सब उसे पागल  और बेवकूफ समझते थे पर वो किसी की बात का कभी भी बुरा नहीं मानता वो सब के साथ हमेशा खड़ा रहता चाहे वो किसी के सुख में हो या दुःख में। सब लोग उसे मना करते की क्यों तुम सबके साथ लगे रहते हो क्या जरूरत है किसी के साथ इतना करने की और ये बात कोई और नहीं उसके घर में ही सब लोग कहते थे।

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मित्रों आप सब सोंचते होंगे की यदि वो सबकी मदद करता, सबके साथ खड़ा रहता तो इसमें बुराई क्या है बल्कि यह तो बहुत ही अच्छी बात है फिर क्यों उसके घर वाले उसे ये सब करने से मना करते हैं।
मित्रों कुछ लोगों की एक बुरी आदत होती है की जब कोई जरूरत हो तो जरूरतमन्द को पकड़ कर रखो और जब काम हो जाए तो उसे सम्मानित करने के बजाय अपमानित करते है और यही कारण था की  उसके घर में सब लोग उसे मना करते थे लेकिन उसे लोगों की मदद करना अच्छा लगता है और अभी भी वो यही के,रत है और ऐसा नहीं की उसे कुछ पता नहीं कि जिनकी वो मदद करता है वही लोग उसकी पीठ पीछे उसकी बुराई करते है पर सब लोग ऐसा नहीं करते थे पर कुछ लोग है जो उसकी बुराई करते पर इसके बावजूद भी वो उन्ही की जो उसकी सबसे ज्यादा बुराई करते थे उनकी मदद करता रहता और जब उसको मदद की आवश्यकता पड़ती तो कोई भी उसका साथ नहीं देता। वो अपने काम छोड़ उनकी मदद करता था। मित्रों उसका मनना है की लोग तुम्हारी कितनी भी बुराई करे पर हमें  कभी भी जरूरत पड़ने पर उनकी मदद करने से पीछे नहीं हटना चाहिये क्योंकि नफरत को प्यार से ही मारा जा सकता है।

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फिर एक दिन उसकी एक लड़की से मुलाकात हुई और दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई।  वो लड़की उसको इतनी अच्छी लगी की वो उससे प्यार कर बैठा पर उसने उस लड़की से कुछ भी नहीं बोला उसे इस बात का डर था की कहीं वो उसे छोड़ ना दे  पर  उसे शायद ये नहीं पता था की वो भी उससे उतना ही प्यार करती थी जितना वो उससे। 

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मित्रों उनकी दोस्ती यूं ही चलती रही और दोनों में प्यार भी बढ़ता गया पर किसी ने भी एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार नहीं किया। उन दोनों के बीच इतना प्यार बढ़ गया की दोनों के लिए एक दूसरे के बिना रह पाना असंम्भव हो गया। एक दिन उसी लड़के की बुआ जी के घर पर उनके सबसे छोटे बेटे के मुण्डन पर उसकी बुआ ने घर पर छोटा सा समारोह किया। 
जिसमे घर पर ही रात में भोजन और फिर माँ भगवती का जागरण का कार्यक्रम था उन दोनों के बीच इतना प्यार था की लड़की को भूख बहुत ही जोर से लगी थी और वो बार-बार उस लड़के से बोलती की चल कर के खाना खा लो

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पर उसको भूख नहीं लगी थी और वो बार-बार उसको ये बोलता कि जा कर के तुम खा लो मुझे अभी भूख नहीं लगी है और जब लगेगी तो खा लूँगा। बहुत समय बाद उस लड़के ने लड़की से पूछा की तुमने कुछ खाया की नहीं, तब उस लड़की ने उससे कहा की तुम्हारे बिना मैं कैसे खा सकती हूँ। उसकी ये बात सुन कर उस लड़के को बहुत गुस्सा आया की इतनी भूख लगने के बावजूद उसने कुछ खाया क्यों नहीं। 
तब उसने कहा की चलो अच्छा खा लेते है, तभी लड़की ने बोला की पहले तुम खा लो फिर मैं खाऊँगी इस पर लड़के ने बोला नहीं साथ में खाते है पर लड़की ने उसकी एक नहीं सुनी और पहले उसको खिलाया और जब लड़के ने खाना खा लिया और अपनी जूठी प्लेट और ग्लास को उठा के ले जाने लगा तभी लड़की ने उसके हाथ से उसकी जूठी प्लेट और ग्लास ले कर उसी में अपना खाना खाया और ये सब देख लड़का अचम्भित रह गया। यह देख लड़के ने उससे पूछा की तुमने मेरे जूठे बर्तन में खाना क्यों खाया................?
इस पर लड़की ने कहा की मेरा मन किया...................!

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उन दोनों को नहीं पता था की उनके जीवन में बहुत बड़ा तूफ़ान आने वाला है। अच्छा मित्रों ये उस समय की बात है जब दोनों में से किसी के पास भी मोबाइल फ़ोन नहीं था इसलिए मिलना जुलना भी बहुत कम हो पाता था। इसलिए उन दोनों के बारे में किसी को भी कुछ पता नहीं चल पाया। 
फिर एक दिन अचानक लड़की के घर पे उसके रिश्ते वाले आ गए क्योंकि लड़की के माता पिता ने उसकी शादी की बात कर रखी थी पर उस लड़की ने उस रिश्ते से मना कर दिया क्योंकि वो उससे शादी करना चाहती थी जिससे वह प्यार करती थी। पर उसने ये बात किसी से नहीं बताई की वो किसी और से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है। 
कुछ दिन बाद फिर उसके घर पर रिश्ते के लिए आ गए और फिर उस लड़की ने उस रिश्ते के लिए मना कर दिया। ऐसे करते उस लड़की ने अपने 3 रिश्ते ठुकरा दिए। इससे उसके माता पिता सोंच में पड़ गए की आखिर किसलिए वो रिश्ते ठुकरा रही है पर एक दिन उस लड़की के घर वालों ने पूछा की वो ऐसा क्यों कर रही है उस समय किसी काम से उस लड़के की बुआ जी भी उस लड़की के घर पे थीं क्योंकि वो लड़की की माँ की पहचान की थीं और तब उस लड़की ने सबके सामने सारी सच्चाई बता दी। 
फिर उसकी माँ ने पूछा की वो लड़का कौन है और क्या करता है तब लड़की ने लड़के की बुआ जी ओर इशारा करते हुए बताया की वो इनका भतीजा है। 
फिर लड़की की माँ ने लड़के की बुआ से उसके बारे में पूछा की वो क्या करता है तो लड़के की बुआ जी ने सब बता दिया तो लड़की की माँ ने उसकी बुआ जी से कहा की आप उससे पूछ कर बताइये कि वो क्या चाहता है। 
फिर उसके अगले ही दिन लड़के की बुआ उसके घर पर जा कर उससे पूछा की "B" (लड़के के नाम का पहला लेटर) "R" (लड़की के नाम का पहला लेटर) तुमसे शादी करना चाहती है तुम क्या चाहते हो तो उसने भी हाँ कर दी। 

पर कहते हैं ना कि..........!

"कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता" 

उसे नहीं पता था की उसकी बुआ ही उसकी ज़िन्दगी बर्बाद करेंगी। उसकी बुआ ने वहाँ जा कर लड़की की माँ से कहा कि वो "R" से शादी नहीं करना चाहता। 
यह सुन लड़की को उनकी बात पे विश्वास नहीं हुआ और उसने कहा की वो ऐसा नहीं कर सकता। इस पर लड़के की बुआ ने उन्हें विश्वास दिलाया की उसने ऐसा ही कहा है। यह सुन उसका बुरा हाल हो गया। वह दिन भर रोती रहती और यही सोचती की उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया.......................?
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जिसके चलते लड़की के माता पिता ने उसकी शादी कहीं और कर दी। और जब लड़के ने उससे मिलने की कोशिश की तो पता चला की उसकी शादी हो गई है। पहले तो उसे यह बात मज़ाक लगी पर जब उसने उस लड़की की कुछ दोस्तों से पूछा तो उसे सच्चाई पता चली, और सच्चाई पता चलते ही जैसे मनो की वो पागल सा हो गया हो। वो बार-बार यही सोचता की सब कुछ सही था फिर उसने शादी क्यों की मैने तो बोला भी था कि मैं उससे शादी करूँगा ये हुए भी उसने किसी और से शादी कर ली।
बस यही बात उसके दिल में घर कर गई और उसके बाद उसका वो हाल हुआ जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते वो पागलों की तरह दिन रात रोता रहता कभी इधर भागता कभी उधर भागता और बस यही सोचता की किसी तरह वह लड़की वापस आ जाए लेकिन अफ़सोस ऐसा हुआ नहीं।
दिन पर दिन उसकी हालत बिगड़ती गई यहाँ तक की उसने खाना पीना भी छोड़ दिया अकेले इधर उधर पागलों की तरह भटकता रहता यहाँ तक वो उसके प्यार में इतना पागल हो गया की उसने अपने हाथ की कलाई पर गर्म सुई से उसका नाम लिख डाला और आज तक वो नाम मिट नहीं पाया। भगवान के मंदिरों में जा कर सर पटक-पटक कर रोता और कहता की मैने ऐसी कौन सी भूल कर दी की मुझे इतनी बड़ी सजा दी। पर भगवान् कहाँ बोलने वाले।
मित्रों ये सच्ची कहानी करीब 11 साल पुरानी है जो कि पूरी तरह सच्ची है।
मित्रों अब वह लड़की उस लड़के के जीवन से हमेशा हमेशा के लिए बहुत दूर जा चुकी है।
पर इसके बाद लड़के का क्या हुआ वो जानने के किये अपने अपने विचार कमेन्ट करें।


















Tuesday, 27 September 2016

'अनसुनी' लवस्टोरी

       पढ़िए पूर्व PM मनमोहन सिंह की 'अनसुनी' लवस्टोरी


stories from manmohan singhs autobiography strictly personal by daman singh

पढ़िए, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जन्मदिन पर उनकी पर्सनल लाइफ के 11 किस्से। 

strictly personal


1. कांटो का खिलाड़ी ‘मोहन’

मोहन अपने दादा संत सिंह और दादी जमना देवी के साथ रहता था. मां अमृत की मौत टाइफॉइड से हुई थी. पापा के पास कोई ऐसी नौकरी नहीं थी, जो उन्हें स्थिर रखे. पिता घूमते रहते, फिर पेशावर में सेटल हो गए. लेकिन मोहन उनसे दूर ही रहा. जमना देवी को घूमने का बहुत शौक था. कभी पैदल, तो कभी खच्चर पर. और घुमक्कड़ बच्चे मोहन को इसमें खूब मजा आता. दोनों निकल पड़ते. एक दिन ऐसा हुआ, कि जमना देवी के पांव में ये बड़ा वाला कांटा चुभ गया. और मोहन ने बड़ी चालाकी से दूसरे कांटे को सुई की तरह इस्तेमाल करते हुए कांटा निकाल दिया. बात इतनी बड़ी नहीं थी. पर दादी तो दादी. सालों तक मोहन की बहादुरी के किस्से घरवालों को सुनाती रहीं.

2. बचपन में मलाई चुराते थे

गांव का स्कूल बस चौथी क्लास तक था. इसलिए मोहन को उनके चाचा-चाची के साथ चकवाल भेज दिया गया. यहां मोहन का मन नहीं लगता. चाचा थोड़े चुप-चुप रहते थे. मोहन को उनसे डर लगता. फिर यूं हुआ कि धीरे-धीरे मोहन अपनी चचेरी बहन तरना का दोस्त बन गया. दोनों दिन भर लड़ते. लेकिन लाड़ भी करते एक-दूसरे को. पांव तो घर पर रुकते नहीं थे मोहन के. पूरा शहर अकेले ही घूम डाला. मजा तो तब आता, जब चाची उसको हलवाई के यहां से दही लाने भेजतीं. मोहन वापसी में सारी मलाई खा जाता. और चाची को पता भी नहीं चलता.

3. बहन के पर्स से करते थे चोरी

रिश्तेदार जब भी आते, तरना को पैसे मिलते. मोहन को पता था वो पैसे कहां रखती. चाबी भी पता थी. मोहन उसमें से जरा-जरा पैसे मारता रहता. उन्हें एक मोज़े में डालकर अपने सूटकेस में छिपा देता. चूंकि किताबों का शौक था, इन बचे हुए पैसों से किताबें ले आता. और शौक भी मामूली नहीं. किताब जरा सी पुरानी हो जाए, फट जाए, या धब्बा लग जाए, तुरंत उसे फेंक नई किताब ले आता. एक दिन चाचा को मोजा मिल गया. मोहन की सांस अटक गई. पर जाने को कौन सा शुभ दिन था, डांट नहीं पड़ी.

4. गांव कभी भूलता नहीं था

मोहन को गांव को खूब याद आती. जाने का मन करता. पर अकेले आने-जाने की सख्त मनाही थी. तो मोहन ने एक दिन झूठ कहा. कि जान-पहचान का कोई आदमी चकवाल से गाह जा रहा है. उसी के साथ जाएगा. और अकेले बस स्टैंड से बस पकड़ गांव पहुंच गया. घर पहुंचा तो धुल और पसीने में सना हुआ. दादा ने झाड़ लगाई. और वापस चाचा के घर रवाना कर दिया. लेकिन एक साल बाद जो हुआ, वो मोहन के कोमल दिमाग के लिए और बुरा था. साल भर बाद पापा आए, और पेशावर ले जाने का ऐलान कर दिया.
पापा ने दूसरी शादी कर ली थी. नई मां से 3 बहनें थीं. मोहन को नहीं पता था आगे क्या होगा. लेकिन नई मां सीतावंती कौर ने मोहन को प्यार-दुलार में कोई कमी नहीं दिखाई. काम करने को कहता भी तो खेलने भेज देतीं. मोहन को ज्यादा समय नहीं लगा उनसे लगाव हो जाने में. और पूरी कोशिश करता की बहनों को खुश रख सके.

5. वो लड़की जो अच्छी लगती थी

ये मोहन के दिमाग की बनावट के दिन थे. सीखने के दिन थे. आठवीं के पेपर में मोहन की जिले में तीसरी रैंक आई. अब दोस्तों में इज्जत बढ़ गई थी. ये वही समय था जब एक लड़की उन्हें खूब पसंद थी. लेडी ग्रिफिथ हाई स्कूल में थी. उसके पापा डॉक्टर थे. मनमोहन सिंह बताते हैं कि टीबी से उसकी मौत हो गई थी. उन्हें उसका नाम नहीं याद आता.

6. मनमोहन की पहली, और महात्मा गांधी की इकलौती फिल्म

तब फिल्मों का चलन इंडिया में नया था. मोहन ने अपनी पहली फिल्म 1943 में देखी थी. नाम था राम-राज्य. ये कहानी थी राम और सीता के अयोध्या वापस आने की. लोग कहते थे ये इकलौती पिक्चर थी जो महात्मा गांधी ने देखी थी.

7. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान

जब दूसरा विश्व युद्ध ख़तम हुआ, जायज़ सी बात है ब्रिटेन खुश था. स्कूलों में मिठाइयां बंटी. लेकिन मोहन को पता था कि ये ब्रिटेन की जीत है, इंडिया की नहीं. खालसा हाई स्कूल में पढ़ने वाले मनमोहन ने दोस्तों को समझाया कि क्यों ये मिठाई नहीं खानी चाहिए. मनमोहन की उम्र उस वक़्त 13 साल थी. लेकिन वो अपनी पॉलिटिक्स समझने लगा था.

8. पार्टीशन और पिता की मौत

समय के साथ मुस्लिम लीग की पाकिस्तान बनाने की मांग आअग पकड़ रही थी. ये बात है 1946 की. जिन्नाह ने जुलाई में डायरेक्ट एक्शन रेजोल्यूशन लोगों के सामने रखा. दंगे भड़क उठे. बंगाल में हिंदू मरे. बिहार में मुसलमान. पार्टीशन के समय मनमोहन सिंह मेट्रिक की परीक्षा दे रहे थे. एग्जाम लाहौर में होना था. उस दिन जब मोहन एग्जाम देने निकले, सड़क पर लाशें बिछी हुई थीं. पूरा शहर पार कर मनमोहन सिंह गए और एग्जाम दिया. ये बात अलग है कि उसका रिजल्ट कभी नहीं आया.
एक दिन मनमोहन के पिता को भाई का टेलीग्राम मिला, ‘मां सुरक्षित हैं, पापा को मार डाला’. मोहन की दादी को एक मुसलमान परिवार ने शरण दी थी. जिससे उनकी जान बच गई थी.

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9. ऊंची हील, सफ़ेद सलवार कमीज़ में मिलीं गुरशरन

जवान मनमोहन लंदन से पढ़कर आया था. जाहिर सी बात है, शादी के मार्केट में खूब डिमांड थी. एक पैसेवाले घर से रिश्ता आया. दहेज़ में फ़िएट कार दे रहे थे. लेकिन लड़की केवल स्कूल भर तक पढ़ी हुई थी. मनमोहन ने कहा, दहेज़ नहीं चाहिए. पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए. तब उनके के परिवार को जानने वाली बसंत कौर मनमोहन के लिए गुरशरन का रिश्ता लेकर आईं. बसंत गुरशरन की बड़ी बहन के पति को जानती थीं. गुरशरन की मां मनमोहन से बसंत के घर पर मिलीं. और लड़का इतना पसंद आया, कि तुरंत अपनी बेटी को बुलवा लिया. और दोनों को अकेले बात करने भेज दिया. ये वो दिन था जब मनमोहन ने गुरशरन को पहली बार देखा था. सफ़ेद सलवार कमीज़, सफ़ेद दुपट्टे, और हील वाली सैंडल में.

10. लेकिन इश्क की हद देखिए

गुरशरन को गाने का खूब शौक था. लेकिन रियाज छूट गया था. एक म्यूजिक कम्पटीशन में हिस्सा लिया. उनके होने वाले पति मनमोहन भी आए थे वहां. प्रोग्राम के बाद गुरशरन के गुरु ने उनकी खूब बुराई की. कहा बेहद बेसुरा गाया. लेकिन मनमोहन का इश्क देखिए. बोले गुरूजी गलत कह रहे हैं. तुमने खूब अच्छा गया. और घर छोड़ने के पहले अगले दिन सुबह के नाश्ते का न्योता दिया. होने वाली बीवी को इम्प्रेस करने के लिए अंग्रेजी ब्रेकफास्ट मंगवाया. कॉर्नफ्लेक्स और अंडे. गुरशरन कहती हैं कि न तो कॉर्नफ्लेक्स में स्वाद था. और अंडे तो वाहियात थे.

11. और नहीं खिंच पाईं शादी की तस्वीरें

गुरशरन और मनमोहन की शादी की तस्वीरें नहीं हैं. क्योंकि मनमोहन के घर वाले फोटोग्राफर अरेंज करना भूल गए थे. दुल्हन की विदाई के कपड़े तक लाना भूल गए थे. गुरशरन अपनी शादी वाले सलवार कमीज़ में ही विदा हुई. गुरशरन कहती हैं कि ये घर तबेले जैसा था. पूरा घर रिश्तेदारों से भरा हुआ था. उन्हें छत पर एक कमरा मिला था. अगले दिन गुरशरन ससुर के सामने अपना सर ढंकने की कोशिश कर रही थीं. ससुर ने कहा, इसकी कोई जरूरत नहीं. चार दिन बाद मनमोहन और गुरशरन चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए.

Sunday, 18 September 2016

एक हैवान की हैवानियत

कहानी शहाबुद्दीन की जिसने दो भाइयों को तेजाब से नहला दिया था

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1300 गाड़ियों का काफिला लेकर जेल से चला शहाबुद्दीन। काफिला गुजर रहा था, टोल टैक्स वाले साइड में खड़े थे। उसी में कई सारे और लोग भी पार हो गए शहाबु के साथ। 
एक दुर्दांत अपराधी शहाबुद्दीन जेल से छूटता है और जनता उसके लिए जय-जयकार करती है। अपराधी खुलेआम बोलता है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘परिस्थितियों का नेता’ है, लालू प्रसाद यादव मेरा नेता है। 
क्योंकि इसी मुख्यमंत्री ने 11 साल पहले शहाबुद्दीन को जेल भिजवाया था, और अब परिस्थितियां ऐसी हैं कि शहाबुद्दीन के नेता लालू प्रसाद यादव के समर्थन से नीतीश मुख्यमंत्री बने हुए हैं। 
शहाबुद्दीन का जेल से छूटना कोई आश्चर्यचकित करने वाली घटना नहीं है। लालू की पार्टी के सत्ता में आते ही ये कयास लगना शुरू हो गया था। लालू के जंगल राज में शहाबुद्दीन जैसा गुंडा ही वोट बटोरता था। जेल से भी जीत जाता था शहाबुद्दीन। सीवान में इसे चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं थी। ‘साहब’ का नाम ही काफी था। वो वक़्त था, जब शहाबुद्दीन की फोटो सीवान जिले की हर दुकान में टंगी होती थी। सम्मान में नहीं, डर के चलते। अभी सीवान से सांसद हैं बीजेपी के ओमप्रकाश यादव। पंद्रह साल पहले शहाबुद्दीन ने ओमप्रकाश को सरेआम दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था सीवान में। 

राजेंद्र प्रसाद के जीरादेई से ही ये गुंडा बना था विधायक

अस्सी के दशक में बिहार का सीवान जिला तीन लोगों के लिए जाना जाता था। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, सिविल सर्विसेज़ टॉपर आमिर सुभानी और ठग नटवर लाल, राजेंद्र प्रसाद सबके सिरमौर थे। आमिर उस समय मुसलमान समाज का चेहरा बने हुए थे, और नटवर के किस्से मशहूर थे। उसी वक़्त एक और लड़का अपनी जगह बना रहा था। शहाबुद्दीन जो कम्युनिस्ट और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ खूनी मार-पीट के चलते चर्चित हुआ था। इतना कि "शाबू-AK 47" नाम ही पड़ गया। 1986 में हुसैनगंज थाने में इस पर पहली FIR दर्ज हुई थी। आज उसी थाने में ये "A-लिस्ट हिस्ट्रीशीटर" है। मतलब वैसा अपराधी जिसका सुधार कभी नहीं हो सकता। 
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अस्सी के दशक में ही लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पक्की कर रहे थे।शहाबुद्दीन लालू के साथ हो लिया, मात्र 23 की उम्र में 1990 में विधायक बन गया। विधायक बनने के लिए 25 मिनिमम उम्र होती है। फिर ये अपराधी दो बार विधायक बना और चार बार सांसद। 1996 में केन्द्रीय राज्य मंत्री बनते-बनते रह गया था। क्योंकि एक केस खुल गया था। वो तो हो गया, पर लालू को जिताने के लिए इसकी जरूरत बहुत पड़ती थी। उनके लिए ये कुछ भी करने को तैयार था। और लालू इसके लिए इसी प्रेम में बिहार में अपहरण एक उद्योग बन गया। सैकड़ों लोगों का अपहरण हुआ, बिजनेसमैन राज्य छोड़-छोड़ के भाग गए, कोई आना नहीं चाहता था। इसी दौरान और भी कई अपराधी आ गए। 

"पर शहाबुद्दीन जैसा कोई नहीं था। बोलने में विनम्र, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का जहीन तरीके से प्रयोग। ‘न्यायिक प्रक्रिया’ में पूरा भरोसा। चश्मे, महंगे कपड़े और स्टाइल और लालू का आशीर्वाद।"


इसके अपराधों की लिस्ट वोटर लिस्ट जैसी है


इसके अपराधों की लिस्ट बहुत लम्बी है। बहुत तो ऐसे हैं जिनका कोई हिसाब नहीं है, जैसे सालों तक सीवान में डॉक्टर फीस के नाम पर 50 रुपये लेते थे। क्योंकि साहब का ऑर्डर था रात को 8 बजने से पहले लोग घर में घुस जाते थे। क्योंकि शहाबुद्दीन का डर था। कोई नई कार नहीं खरीदता था। अपनी तनख्वाह किसी को नहीं बताता था, क्योंकि रंगदारी देनी पड़ेगी। शादी-विवाह में कितना खर्च हुआ, कोई कहीं नहीं बताता था। बहुत बार तो लोग ये भी नहीं बताते थे कि बच्चे कहां नौकरी कर रहे हैं। कई घरों में ऐसा हुआ कि कुछ बच्चे नौकरी कर रहे हैं, तो कुछ घर पर ही रह गए, क्योंकि सारे बाहर चले जाते तो मां-बाप को रंगदारी देनी पड़ती। धनी लोग पुरानी मोटरसाइकल से चलते और कम पैसे वाले पैदल। लालू राज में सीवान जिले का विकास यही था।

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पर इन्हीं अपराधों ने शहाबुद्दीन को जनाधार बना दिया। वो अपने घर में जनता अदालत लगाने लगा। लोगों की समस्याएं मिनटों में निपटाई जाने लगीं। किसी का घर किसी ने हड़प लिया। साहब का इशारा आता था। अगली सुबह वो आदमी खुद ही खाली कर जाता। साहब डाइवोर्स प्रॉब्लम भी निपटा देते थे। जमीन की लड़ाई में तो ये विशेषज्ञ थे। कई बार तो ऐसा हुआ कि पीड़ित को पुलिस सलाह देती कि साहब के पास चले जाओ। एक दिन एक पुलिस वाला भी साहब के पास पहुंचा था। प्रमोशन के लिए, एक फोन गया, हो गया प्रमोशन।

"जनता इन छोटे-छोटे फायदों में इतना मशगूल हो गई कि इसके अपराधों की तरफ ध्यान देना भूल गई। या यूं कहें कि डर और थोड़े से फायदे ने दिमाग ही कुंद कर दिया था। लोगों ने देखना बंद कर दिया कि इसने कितनी जमीनें हड़पीं, कितने हथियार पाकिस्तान से मंगवाए, नतीजन ये जीतता रहा।"


जेल जाने से पहले इसने पुलिस पर फायरिंग की, सांसद बना.....!



इसकी हिम्मत इतनी बढ़ गई कि पुलिस और सरकारी कर्मचारियों पर इसने हाथ उठाना शुरू कर दिया। मार्च 2001 में इसने एक पुलिस अफसर को थप्पड़ मार दिया। इसके बाद सीवान की पुलिस बौखला गई। एकदम ही अलग अंदाज में पुलिस ने दल बनाकर शहाबुद्दीन पर हमला कर दिया। गोलीबारी हुई, दो पुलिसवालों समेत आठ लोग मारे गए पर शहाबुद्दीन पुलिस की तीन गाड़ियां फूंककर भाग गया नेपाल। उसके भागने के लिए उसके आदमियों ने पुलिस पर हजारों राउंड फायर कर घेराबंदी कर दी थी। 

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1999 में इसने कम्युनिस्ट पार्टी के एक कार्यकर्ता को किडनैप कर लिया था। उस कार्यकर्ता का फिर कभी कुछ पता ही नहीं चला। इसी मामले में 2003 में शहाबुद्दीन को जेल जाना पड़ा। पर इसने ऐसा जुगाड़ किया कि जेल के नाम पर ये हॉस्पिटल में रहता था। वहीं पंचायत लगाता। इसके आदमी गन लेकर खड़े रहते। पुलिस से लेकर हर व्यवसाय का आदमी इससे मदद मांगने आता। एक आदमी तो इसके लिए गिफ्ट में बन्दूक लेकर आया था, और ये हॉस्पिटल कानूनी तौर पर जेल था। इसके जेल जाने के आठ महीने बाद 2004 में लोकसभा चुनाव था। इस अपराधी को चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं पड़ी,और जीत गया, ओमप्रकाश यादव इसके खिलाफ खड़े हुए थे। वोट भी लाये, पर चुनाव ख़त्म होने के बाद उनके आठ कार्यकर्ताओं का खून हो गया।
2005 में सीवान के डीएम सी के अनिल और एसपी रत्न संजय ने शहाबुद्दीन को सीवान जिले से तड़ीपार किया। एक सांसद अपने जिले से तड़ीपार हुआ, ये बिहार के लिए अनोखा क्षण था। फिर इसके घर पर रेड पड़ी, पाकिस्तान में बने हथियार, बम सब मिले। ये भी सबूत मिले कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI से इसके संबंध हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पूछा था कि सांसद होने के नाते तुम्हें वैसे हथियारों की जरूरत क्यों है जो सिर्फ आर्मी के पास हैं, सीआरपीएफ और पुलिस के पास भी नहीं हैं। 

जेल जाने से कम नहीं हुआ इसका रुतबा


इतना सब होने के बाद भी इसका घमंड कम नहीं हुआ। इसने जेलर को धमकी दी कि तुमको तड़पा-तड़पा के मारेंगे। सुनवाई पर इसका वकील जज को भी धमकी दे आता था। इसके आदमी जेल के लोगों को धमकाते रहते। 2007 में कम्युनिस्ट पार्टी के ऑफिस में तोड़-फोड़ करने के आरोप में इसको दो साल की सजा हुई, फिर कम्युनिस्ट पार्टी के वर्कर की हत्या में इसे आजीवन कारावास की सजा हुई। सिर्फ एक गवाह था इस मामले का, उसने बड़ी हिम्मत दिखाई, किसी तरह बच-बचकर रहा था, और इस अपराधी को जेल भिजवाया।

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एक और मुन्ना मर्डर केस में विटनेस राजकुमार नें  कुछ यूं बयान दिया था.........!

"मैं अपने दोस्त मुन्ना के साथ मोटरसाइकिल पर जा रहा था। तभी शहाबुद्दीन और उसके आदमी कारों से आये, और हम पर फायरिंग शुरू कर दी। एक गोली टायर में लगी और हम लोग गिर गए, तब शहाबुद्दीन ने मुन्ना के पैर में गोली मार दी, और उसे घसीट के ले जाने लगा। बाद में पता चला कि मुन्ना को एक चिमनी में फेंक दिया गया था।" 


तब तक लालू राजनीति से बाहर हो चुके थे, पर इसकी शक्ति कम नहीं हुई थी, कोई इसके खिलाफ खड़ा होने की भी नहीं सोचता था। 1997 में JNU से एक छात्र नेता चंद्रशेखर गए थे नई राजनीति करने, उनको भी मार दिया गया। उसके बाद से सिर्फ एक नेता ओमप्रकाश यादव ही लगे रहे। 2009 में शहाबुद्दीन को इलेक्शन कमीशन ने चुनाव लड़ने से बैन कर दिया, तब इसकी पत्नी हिना को हराकर ओमप्रकाश सांसद बने।
अब बिहार की राजनीति में ये बहुत पीछे चला गया, पर सीवान में नहीं, वहां पर जेल से ही इसके फैसले सुनाये जाते। कहते हैं कि जेल इसके लिए बस नाम भर की थी। सारे इंतजाम रहते। जब कोई हत्या हो जाती तो जेल में रेड पड़ती। एक अफसर के मुताबिक शहाबुद्दीन मुस्कुराता रहता, चुपचाप जेब से निकालकर मोबाइल फोन पुलिस के हाथ में दे देता, ये कई बार हुआ।

2014 लोकसभा चुनाव से इसके बाहर आने की  संभावना  बढ़ने लगी

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2014 में शहाबुद्दीन फिर लोगों की जबान पर आया। राजीव रंजन हत्याकांड में अपने दो भाइयों की हत्या के वो एकमात्र गवाह थे। उनके दो भाइयों को 2004 में तेजाब से नहलाकर मार दिया गया था, क्योंकि रंगदारी को लेकर इसके आदमियों और राजीव के भाइयों में बहस हो गई थी। इन लोगों ने बन्दूक दिखाई और राजीव के भाई ने तेजाब, दोनों भाई मारे गए। परिवार को पुलिस ने कह दिया कि सीवान छोड़कर चले जाइये, और अब कोर्ट में पेशी से पहले राजीव को मार दिया गया। 2016 में एक पत्रकार ज्ञानदेव रंजन की हत्या कर दी गई। उसमें भी इसी का नाम आया। इन दो भाइयों की हत्या वाले मामले में ही इसको बेल मिली है, क्योंकि कोई गवाह नहीं था। 

ये जेल से बाहर आ गया है। बिहार में बहार आ गई है। भारत में राजनीति और अपराध के रिश्ते का सबसे बड़ा पैमाना है शहाबुद्दीन। इसका छूटना वो सारे टूटे कांटे दिखाता है, जो हमारे देश की डेमोक्रेसी में धंसे हैं। इसके बाहर आने के खिलाफ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है, देखते हैं क्या होता है।

धन्यवाद..............!